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________________ पुत्रानुशास्तिः संवेगरंगसाला ॥३९॥ अणुवत्तेजसु नीइं, पाणप्पियपणइणि वणिच्चंपि । अन्नायं पुण रुंभेज, सव्वहा दुट्ठसत्तं व ॥४७०॥ वत्थन्नपाणभूसण-सेजाजाणाइएसु अपमत्तो । पेहेज विसविगारं, च भिंगारायाइपकूखीहि ॥४७१॥ पयडीए मिंगराओ, सुगो तहा सारिया इमे विहगा। सन्निहियपन्नगविसा, करुणं कुव्वन्ति उब्बिग्गा ॥४७२।। झत्ति विरजन्ति विसं, दट्टणं लोयणा चकोरस्स । नच्चइ फुडं च कुंचो, मरइ पुण मत्तकोइलओ ॥४७३॥ भोत्तुमहिलसियमन्नं, थेवं हि परिक्रवणत्थमग्गीए । पक्खिविऊणं सम्म, तल्लिंगाई पि पेहेजा ॥४७४॥ धुमामा जाला से, नीलतं अग्गिणो य फोडरवो । तल्लग्गमच्छियाईण, निच्छिय होइ मरणं च ॥४७५।। न तहा सुस्सिन्नत्तं, जलाविलतं तहा विवन्नत्तं । सिग्धं च सीयलतं, जायइ विसभावियन्नस्स ॥४७६।। नीरस्स कोइलाभा, सविसस्स दहिस्स पुण भवे सामा । आयंबा दुद्धस्स य, मज्झम्मि होति रेहाउ ॥४७७|| पमिलाणत्तं विससियस्स, सव्वस्स अल्लदम्बस्स । सुक्कस्स विवन्नत, विवरीयत्तं खरमिऊणं ॥४७८|| पाउरणत्थरणाणं, झामप्पहमंडलाण बाहुल्लं । लोहमणिपमुहाणं तु, होइ मलपंककलुसतं ॥४७९॥ एवं सामन्नेणं, नाऊणं पुत्त ! सुत्तजुत्तीए । विससियदव्वाई, दरेण परिहरेज तुम ॥४८॥ अञ्चन्तगूढमतो, परिभागविऊ य देसकालाणं । सारत्थाणमदाई, दाई वि कहिं पि पत्तविऊ ॥४८॥ सुपरिक्खियकजकरो, विसेसओ संधिविग्गहविऊ य । उचियन्नू य कयन्नू, पियंवओ सब्वखेयन्नू ॥४८२॥ १. सर्ववेदसः = सर्वप्रकारगलशिक्षादिवेत्ता । | -॥३९॥...
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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