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________________ संवेगरंगसाला शैलेशीकरणस्वरूपम् । ॥७४८॥ तथाहिपज्जत्तमेत्तसन्निस्स, जेत्तियाई जहन्नजोगिस्स । होति मणोदव्वाई, तव्वावारो य जम्मत्तो ॥९७५८॥ तयऽसंखगुणविहीणे, समए समए निरंभमाणो सो। मणसो सव्वनिरोई, कुणइ असंखेजसमएहिं ॥९७५९॥ पज्जत्तमेत्तविंदिय-जहन्नवइजोगपज्जया जे उ। तदऽसंखगुणविहीणे, समए समए निरंभतो ॥९७६०॥ सव्ववइजोगरोहं, संखोऽईएहि कुणइ समएहि । तत्तो उ सुहुमपणगस्स, पढमसमओववनस्स ॥९७६१॥ जो किर जहन्नजोगो, तदऽसंखेजगुणहीणमेकसमएण । समए निरंभमाणो, देहतिभागं च मुंचंतो ॥९७६२॥ रुभइ स कायजोगं, संखाईएहि चेव समएहिं । तो कयजोगनिरोहो, सेलेसीभावणामेइ ॥९७६३॥ सेलेसो किर मेरू, सेलेसी होइ जा तहाऽचलया। होउ व असेलेसो, सेलेसी होइ थिरयाए ॥९७६४॥ अहवा सेलु व्व इसी, सेलेसी होइ सो उ थिरयाए । सेव अलेसी होइ, सेलेसी होअलोवाओ ॥९७६५॥ सील व समाहाणं, निच्छयओ सव्वसंवरो सो य । तस्सेसो सीलेसो, सेलेसी होइ तदऽवत्था ॥९७६६।। हस्सऽकखराई मज्झेण, जेण कालेण पंच भणंति । अच्छइ सेलेसिगओ, तत्तियमेतं तओ कालं ॥९७६७॥ तणुरोहाऽऽरंभाओ, झायइ सुहुमकिरियाऽनियट्टि सो। वोच्छिन्नकिरियमऽप्पडि-वाइ सेलेसिकालम्मि ॥९७६८॥ तदऽसंखेजगुणासेढीए, विरइयं आसि जं पुरा कम्मं । समए समए खवय', कमसो सेलेसिकालेण ॥९७६९। १ तदऽसंखेजगुणाए, गुणसेढीए रइयं पुरा कम्मं पाठां । ॥७४८॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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