SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 718
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवेगरंगसाला धर्मगुरोः परीक्षा । ॥६८०॥ एवं दिट्ठन्तगुणा, सज्झम्मि वि एत्थ होंति नायव्वा । न हि सोहम्माऽभावे, पायं जं होइ दिद्रुतो ॥८८५१॥ चउकारणपरिसुद्ध', कसछेयत्तावतालगाए य । जं तं विसघाइरसा-यणाऽऽगुणसंजुयं होइ - ॥८८५२॥ इयरम्मि कसाऽऽईया, विसिट्ठलेसा तहेगसारत्तं । अवगारिणि अणुक पो, वसणे अइनिच्चलं चित्तं ॥८८५३॥ तं कसिणगुणोवेयं, होइ सुवण्णं न सेसयं जुत्ती। न वि नामरूवमेत्तेण, एवमऽगुणो भवइ साहू ॥८८५४॥ जुत्तीसुवन्नगं पुण, सुवन्नवन पि जइ वि कीरेजा। न हु होइ तं सुवष्णं, सेसेहि गुणेहि असंतेहि ॥८८५५।। जे इह सत्थे भणिया, साहुगुणा तेहिं होइ सो साहू । वन्नेणं जच्चसुवन्न-गं व संते गुणनिहिम्मि ॥८८५६॥ जो साहुगुणरहिओ, भिख हिंडइ न होइ सो साहू । वन्नेणं जुत्तिसुवन्न-गं वसंते गुणनिहिम्मि ॥८८५७॥ उद्दिटुकडं भुंजइ, छक्कायपमद्दणो घरं कुणइ । पञ्चक्ख च जलगए, जो पियइ कहं नु सो साहू ॥८८५८॥ । अन्ने उ कसाऽईया, किल एए एत्थ होंति नायव्वा । एयाहि परिकखाहिं', साहुपरिकूखेह कायव्वा ।।८८५९॥ तम्हा जे इह सत्थे, साहुगुणा तेहि होइ सो साहू । अञ्चन्तसुपरिसुद्धेहि, मोक्खसिद्धित्ति काऊणं ॥८८६०॥ इय मोक्खसाहगगुणाण, साहणा देसिओ य जो साहू । धम्मोवएसगिरणा, सो चेव गुरू वि ता एत्तो।।८८६१॥ नीसेससाहुगुणस्यणाऽ-लंकियतणुस्स वि गुरुस्स । सविसेसमऽसेसजणं, वियोहि भण्णइ परिक्खा ॥८८६२॥ सा पुण परलोयपरंमुहस्स, इहलोगबद्धबुद्धिस्स । सद्धम्मवासणाविर-हियस्स विसओ न होइ तहा ॥८८६३॥ लोइयठिईए जो वि य, जणणीजणए वि देवयब्भूए । दुपरिचए चइत्ता, निस्सीकाऊण के पि नरं ॥८८६४॥ ॥६८०॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy