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________________ संगरंगसाला ॥८०२८॥ ॥८०२९॥ ॥८०३०॥ गर्भावस्थास्वरूपम् । तहाहि- . अम्मापिउसंजोगे, सोणियसुक्काण मीलणे कलुसं। जं होइ तत्थ जीवो, उप्पजइ पढममेव तओ तं कलुसं सत्ताहं, कललं होऊण अब्बुयं होइ । सत्ताहं चिय तत्तो, घणरूवं पढममासम्मि करिसूणं पलमेतं, जायइ बीयम्मि तं च मासम्मि । घणरूवमंसपेसी, संपज्जइ तइयमासे य जणणीए जणइ डोहल-मंऽगाणि य पीणइ चउत्थम्मि । निव्वत्तइ पंचमगे, सिरकरचरणऽकुरमऽवत्तं उवचिणइ छट्टमासे, सोणियपित्ताई सत्तमम्मि पुणो। सत्तसयाई सिराणं, पंच सयाई च पेसीणं धमणीओ नव सव्वंग-भाविअधुट्ठरोमकोडीओ। निव्वत्तइ अट्ठमए, वित्तीकप्पो भवइ पच्छा नवमे वा दसमे वा, जणणि अप्पाणयं च पीडतो । नीसरइ जोणिकुहराओ, विरससई रसेमाणो अणुपुव्वीए वुड्ढीगए य, देहम्मि मुत्तहिराणं । पत्तेयमाऽऽढयं कुल-वओ य तह सि भपित्ताणं सुक्कस्स अद्धकुलवो, हवेइ पत्थो य मत्थुलिंगस्स । अद्वाऽऽढओ वसाए, एक्को पत्थो पुरीसस्स अट्ठीणं तिनि सया, भरिया बीभच्छकुणिममजाए। संधीणं सव्वग्गं, सट्ठीअहियं सयं होइ नव हारूण सयाई, सिरासयाई च हांति सत्तेव । होति य पंच सयाई, देहम्मि मंसपेसीणं इय सुक्कसोणियप्पमुह-कलुसपोग्गलचएण निम्माओ। नवमाससमाओ असुई-रसपाणुवलद्धपरिवुइढी जोणिमुहनीहरिओ वि, जणणीथणछीरपीणिओ बाद। पगइअमेज्झमइओ, सुइत्तमाऽऽवहा कहं देहो ॥८०३२॥ ॥८०३३॥ ॥८०३४॥ ॥८०३५॥ ।।८०३६।। ॥८०३७॥ ॥८.३८॥ ॥८०३९॥ ८०४०॥ ॥६१८॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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