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________________ संवेगरंगसाला मनो-वशीकरणे ज्ञानं अपूर्व | साधनम् । ॥६०४॥ नाणोवयोगरहितो, न तरइ नियचित्तनिग्गरं काउं। नाणं अकुसभूय, चित्तस्सुम्मत्तकरिणो व्व ॥७८४२॥ विज्जा जहा पिसायं, सुठ्ठ पउत्ता करेइ पुरिसवसं । नाणं हिययपिसायं, सुट्ठ पउत्तं तह करेइ ॥७८४३॥ । उपसमइ किन्हसप्पो, जह मंतेण विहिणा पउत्तेण। तह हिययकिन्हसप्पो, सुठ्ठवउत्तेण नाणेण ॥७८४४॥ आरनओ वि हत्थी, मत्तो नियमिज्जए वरत्ताए । जह तह इह नियमिज्जइ, नाणवरत्ताए मणहत्थी ॥७८४५॥ ॥ जह मक्कडओ खणमऽवि, रज्जूए विणा न ठाइ एगत्थ । तह खणमऽवि मज्झत्थो, नाणेण विणा न होइ मणो ॥७८४६॥ । तम्हा सो अइचवलो, मणमक्कडओ जिणोवएसेणं । काउ सुत्तनिबद्धो, रामेयवो सुहज्झाणे ॥७८४७॥ नाणुवओगो तम्हा, खमगस्स विसेसओ सया भणिओ। जह १चक्कटुवओगो, चंदगवेझं करेंतस्स ॥७८४८॥ । नाणपईवो पज्जलइ, जस्स हियए विसुद्धलेसस्स। जिणदिट्ठमोक्खमग्गे, न पणासभयं भवे तस्स ॥७८४९।। नाणुज्जोएण विणा, जो इच्छइ मोक्खमग्गमुवगंतुं। गंतु कडिल्लमिच्छइ, जम्मंऽधो इव वरागो सो ॥७८५०॥ जइ खंडसिलोगेहि वि, मरणाउ रखिओ जवो साहू । ता कह नो रक्खिज्जइ, जिणुत्तसुत्तेण भवभयओ॥७८५१॥ तहाहिउज्जेणीनगरीए, अनिलसुओ नरवई जवो आसि । पुत्तो य गद्दभो से, जुवराओ परमपणयपय ॥७८५२॥ नीसेसरज्जकज्जाण, चितगो दिग्धपिट्ठनामो य। मंती अहेसि विस्सास-भायणं सव्वकज्जेसु ॥७८५३।। १ चक्राष्टकोपयोगः । ॥६०४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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