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________________ संवेगरंगसाला नमस्कारमन्त्रस्य प्रभावः । ॥५८९॥ अन्न' चएयस्स जहाविहिविहिय-सव्वआराहणापयारस्स । कामियफलसंपायण-पहाणमंतस्स य पभावा ॥७६४४॥ । सत्तू वि होइ मित्तो, तालउडविस पि जायए अमय। भीमाण्डवी वि वियरइ, चित्तरई वासभवणं व ॥७६४५।। चोरा वि रक्खगतं, उति साऽणुग्गहा भवंति गहा । अवसउणा वि हु सुहसउण-साहणिज' जणंति फलं ॥७६४६।। जणणीओ इव न कुणंति, डाइणीओ वि थोवमऽवि पीड। पभवंति न रुदा मंत-तंतजंतप्पयारा वि ॥७६४७॥ पंकयपुजो व्व सिही, सीहो गोमाउओ ब्व वणहत्थी। मिगसावो व्व विहावइ, पंचनमोक्कारसामत्था ॥७६४८॥ । एत्तो चिअ सुमरिजइ, निसियणउट्ठाणखलणपडणेसु । सुरखेयरपभिईहिं वि, एसो परमाए भत्तीए ॥७६४९॥ धण्णाण मणोभवणे, सदाबहुमाणवढिनेहिल्लो। मिच्छत्ततिमिरहरणो, वियरइ नवकारवरदीवो ॥७६५०॥ जाण मणवणणिगुंजे, रमइ णमोकारकेसरिकिसोरो। ताण अणिट्ठदोघट्ट-घट्टघडणा न नियडे वि ॥७६५१॥ ता निविडनिगडघडणा-गुत्ती ता वजपंजरनिरोहो। नो जावजवि जविओ, एस नमोकारवरमंतो ' ॥७६५२।। दप्पिट्ठदुट्ठनिठुर-सुरुद्वंदिट्ठी वि होइ ताव परो। नवकारमंतचिंतण-पुव न पलोइओ जाव ॥७६५३॥ मरणरणऽगणगणसं-गमे गमे गामनगरमाऽऽईण। एय' सुमरंताण', ताण' संमाणणं च भवे ॥७६५४॥ तहाजलमाणमणिपहुफुन्न-फारफणिवइफणागणाहितो। पसरंतकिरणभरभग्ग-भीमतिमिरम्मि पायाले ॥१६५५॥ सं.रं. ५. ॥५८९॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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