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________________ संवेगरंगसाला ॥५६९॥ तप्पढमयाए जं जत्थ, भ्रुअए सा भवे उ देसविही । तीए कहा पुण जा सा, देसविहिकहा मुणेयव्वा ॥ ७३८३ ॥ अहवा विवाहभायण - भोयण मणिव्वए पसाहणाऽऽईणं । जा विरयणा विहीए, कहेह सा विहिकहा होइ || ७३८४|| विहिका । अह होइ विगर्षकहा, तत्थ विगप्पो हु सासनिष्पत्ती । तह वप्पकूवसारणि - नइरेल्लगसालिरोप्पाऽऽई । ७३८५॥ घरदेवउलविभागो, तहा निवेसो य गामनगराऽऽई । एमाऽऽईओ तस्स उ कहा भवे इह वियष्पकहा ||७३८६|| नेवत्थं इह भन्नइ, इत्थी पुरिसाण संतिओ वेसो । सो य दुहा साहाविय - भूसोपच्चइय भेएणं ।।७३८७।। तरसंसा निंदा वा, नेवत्थकहा भवे मुणेयव्वा । इइ चउहा देसकहा, रायकहा भन्नए अहुणा ।।७३८८।। सा वि चउद्धा भणिया, निजाणकहा तहेव अइयाणे । होइ बलवाहणकहा, तह कोट्ठाऽगारकोसकहा ॥ ७३८९॥ गामनगराऽऽगराओ, निग्गमणं नरवइस्स निजाणं । एएसुं चिय जं पवि-सणं तु तं वेति अइजाणं निजाणं अइयाणं, पडुच्च जं वण्णणं णरे दस्स । सा किर निआणकहा, अइयाणकहा य होइ तहा तहा उद्दामसद्ददुंदुहि-झौंकारमिलंतमंतिसामंतो । करितुरयच किपाइक - चक्क अकंतमहिवींढो करिपट्टिसंनिविट्ठो, ससिसच्छहछत्तचामराऽऽडोवो । नयराउ नीइ राया, राया व सुराण रिद्वीए २ वियरित्तु चित्तकीलं, कीलागिरिकाणणाऽऽइसु जहिच्छ' । तुरयखुरुकुखयखोणी - रयधूसरसयलसेनजणो ॥ ७३९४ ॥ १ ० मणिच्चपसाहणाईंणं पाठां । २ विरइत्तु B | ॥ ७३९० ॥ ।।७३९१ ।। ।।७३९२ ।। ।।७३९३।। विकल्पकथाआदिविकथानां स्वरूपम् । yove. ॥५६९॥ .
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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