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________________ संवेगरंगसाला द्वेषपापस्थानस्वरूपम् । ॥४७२॥ हा दुटु दुटु मा आउ-कायजीवा विराहिया होजा । एवं परिभातो, अधिई जा कुणइ सो झत्ति ॥६१०६॥ ता सम्मदिहिगाए उ, देवयाए पराजिणित्ता तं । सपएसो से ऊरू, संघडिय पुणन्नवो विहिओ ॥६१०७॥ एवं पेजविवखे, वटुंतो सो हु सुगतिमऽणुपत्तो । इयरी य पेजनडिया, विडंबणाभायणं जाया ॥६१०८॥ इय भो देवाणुप्पिय ! तुम पि जिणवयणविमलसलिलेण। निव्वावसु पेज्जऽग्गिं, समीहियऽत्थस्स सिद्धिकए ॥६१०९।। दसमं पावट्ठाणग-मेवं संखेवओ पवक्खायं । दोसामिहाणमेत्तो, एक्कारसमं परिकहेमि ॥६११०॥ अचंतकोहमाणु-भवो इहं असुहआयपरिणामो । दोसो भन्नइ जम्हा, दृसिज्जइ तेण सपरजणो ॥६१११।। दोसो अणत्थभवणं, दोसो भयकलहदुखभंडारो। दोसो कज्जविणासी, दोसो असमंजसाण निही ॥६११२।। दोसो अनिव्वुइकरो, दोसो पियमित्तदोहकारी य । सपरोभयतावकरो, दोसो दोसो गुणविणासो ॥६११३॥ दोसेण चेव कलिओ, परगुणदोसे विकत्थइ पुरिसो। दोसकलुसियमणो च्चिय, आवहइ ऊणहिययत्तं ॥६११४॥ ऊणहिययस्स उ परो, जं जं चेट्टइ उ अप्पगयमेव । अप्पविसयं खु तं तं, मन्नइ मूढो किलिस्सइ य॥६११५॥ धम्मोवएसरूवं, रइठाणं पि हु परेण सीसंतं । महुसंमियपायसमिव, दूसइ पित्तद्दिओ व जडो ॥६११६।। ता जइ रइठाणं पि हु, अरइपयं होइ जस्स दोसेण । ता दोसस्स न जुत्तो, दाउमऽणज्जस्स अवयासो ॥६११७॥ जे जेत्तिया य पुव्विं, भणिया दोसा हयाऽऽसदोसस्स । ते तेत्तिय च्चिय गुणा, भवंति सुविसुद्धपसमस्स ॥६११८॥ १ संभिय = संभृत = मिश्रित । ॥४७२॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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