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________________ संवेगरंगसाला श्रीस्थूलभद्रमुनिगुणवर्णनम् । ॥३०५|| मुहमहुर परिणइम'गुल च, सो चिन्तिऊण घरवासं । निच्छिन्नविसयवंछो, पडिवन्नो संजमुजोगं ॥३९१७॥ | संभूयविजयमुणिवइ-पयंऽतिएऽहिगयसयलसुत्तऽत्थो। अणुयोगधरो जातो, तत्कालियमुणिवरवरिटो ३९१८।। जो पुव्बपरिचियाए, उवकोसविलासिणीए गेहम्मि। वुत्थो चाउम्मासं, मुसुमरियमयणमाहप्पो ॥३९१९।। अच'तविम्हयकर', चरियं अऽवि निमामि जस्स । के के न हो ति आणंद-बहलपुलयंऽचियसरीरा ॥३९२०॥ धीरा ते च्चिय जेसि, संते वि मणवियारहेउम्मि । न बियारमेइ नग्गिह-गएण इति संसियं जेण ॥३९२१।। सीहगुहामुहउस्सग्ग-कारिपमुहप्पहाणमुणिमज्झे। अइदुक्करदुक्करकार-गो त्ति जो भासिओ, गुरुणा ॥३९२२।। निम्मलसीलाऽऽण दिय-मणाए नरनाहदिन्नपइपुरओ। उवकोसाए वि सभत्ति-पुब्वमुववूहिओ जो य ॥३९२३।। "न दुक्करं अम्बयलुबितोडण', न दुक्करं सिक्खिउ नच्चियाए। तं दुक्करंतं च महाऽणुभावं, जं सो मुणी पमयवणम्मि वुत्थो"||३९२४|| इय कोमुइमयल'छण-सच्छहजसलच्छिमंडियजयस्स । जाया से दो सीसा, महागिरी तह महत्थी य ॥३९२५।। ते वि तहाविहनिम्मल-गुणमणिनिहिणो विणिज्जियाऽण गा। भव्वजणकुमुयबोहण-पयंडससिमंडलसमाणा ॥३९२६।। चरणकरणाऽणुओग-पहाणसव्याऽणुओगपरिहत्या। उच्छाइयबहलसमु-उछलन्त मिच्छत्ततमपसरा ॥३९२७।। उवलद्धसुद्धगुणमणि-खणिगणिपयपयडपसरियपयावा। भुवणजणपणयचरणा, चिरकाल विहरिया वसुहं ॥३९२८॥ अह सिस्सपसिस्साण वि, विहिपुच्चुवइट्ठसयलमुत्तऽत्थो। निययगणमप्पिउण, महागिरी सिरिसुहत्थिस्स ॥३९२९।। ॥३०५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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