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________________ संवेगरंगसाला ॥२९८॥ ता सयणे उवहिम्मि य, कुले य गच्छे य निययदेहे वि। पडिबध मा काहिसि, मूलमऽणत्थाणमेस जओ॥३८२५।। इच्छामो अणुसढि ति, जंपिउ' गुरुगिराए बद्धरई। ताहे सयंभुदत्तो, पडिवन्नो उत्तम अ8 ॥३८२६॥ तप्पुनपगरिसेण य, १आउट्टो कुणइ पुरजणो पूर्य । अह सो पुव्वविउत्तो, सुगुत्तनामो लहुगभाया ॥३८२७।। परिभममाणो पत्तो, तम्मि पएसम्मि तो पुरीलोग। एगाऽभिमुह मुणिव-दणदुमित पलोइत्ता ॥३८२८॥ पुच्छियऽमणेण किं एस, एत्थ वच्चइ जणो समग्गो वि।कहियं नरेण ए*ण, तस्स जह एत्थ मुणिवसभो ॥३८२९॥ कयभत्तपरिच्चागो, सद्धम्ममहानिहि व्व पच्चकखो। निवसइ तं पुण तित्थं व, वंदिउ एस जाइ जणो ॥३८३०॥ एवं सोचा कोऊहलेण, लोगेण सह सुगुत्तो वि। समणं सयंभुदत्तं, दट्ठ तं देसमऽणुपत्तो ॥३८३१॥ अह मुणिणो रूवं पे-च्छिऊण संजायपच्चभिन्नाणो। पम्मुक्कदीहपोक, रोइत्ता भणिउमाऽऽद्वत्तो ॥३८३२॥ हे भाय! सयणवच्छल!, छलिओ सि कहं व कूडसमणेहि। जं एरिसिं अवत्थं, गओ तुमं दूरकिसियंऽगो ॥३८३३॥ अञ्ज वि छडेहि लहूं, पासंडमिमं वयामु नियदेसं । तुज्झ वियोगेण फुड, फुट्टइ मह हिययमचिरेण ॥३८३४॥ इय जंपियम्मि तेणं, सयंभुदत्तो वि ईसिपडिबधा। तं बाहरिउ पुच्छइ, समग्गमऽवि पुव्ववुत्तंत ॥३८३५।। सो वि य चिलायधाडी-विहडणपामोकखनियगवुत्त । साहेइ सोगखलिर-ऽखराए वाणीए दुक्खत्तो॥३८३६॥ अह कलुणवयणसवणुब्भवंत-पडिबधकलुसियज्झाणो। सव्वट्ठसिद्धिपाआग्ग-२कंडगाई पि खंडित्ता ॥३८३७॥ १ आवृत्तः = आवर्जितः । २ कण्डकानि = संयमणिअध्यवसायस्थानानि । अनशनस्वीकारः भ्रातृमिलनम् स्नेहकलुषितध्यानस्य स्वयम्भूदत्तस्य सौधर्म उत्पत्तिः। ॥२९८॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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