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________________ संवेगरंगसाला मुनेः उपकारेण प्रवज्यास्वीकारः ॥२९७॥ कत्थ मरुमंडलो कत्थ, कप्पविडवी महाफलसमिद्धो। कत्य अधणस्स गेहं, कत्थ व तत्थेव स्यणनिही॥३८११२॥ कत्थाऽहं सुदुहट्टो, अणप्पमाहप्पवं च कत्थ तुमं । अहह ! विहिविलसियाणं, को परमत्थं जए मुगइ ॥३८१२।। एवं विहोवयारिस्स, तुज्झ भयवं महं अधन्नस्स । दिन्नेण केण केण व, करण जाएज रिणमोक्खो ॥३८१३।। मुणिणा भणियं भद्दय !, जइ रिणमोकूख समीहसे काउं। निरवज पव्वज, पडिवजसु ता तुममियाणिं॥३८१४।। उवयारो वि मए तुह, एईए कएण नणु कओ इहरा । अस्संजयचिन्ताए, अहिगारो नत्थि सुमुणीण ॥३८१५।। न य भद्द! धम्मवियल, सलहिलइ जीबियं मणुस्साणं । ता चयसु गिहाऽऽसंग, गिस्संगो हवसु सुस्समगो।।३८१६।। भालयलाऽऽरावियपाणि-कमलमउलेण तेण तो भणिय। भयवं! करेमि एयं, नवर लहुभाइपडिबंधो ॥३८१७।। बिहुरेइ मम मणं जइ य, होज सह तेण दंसणं कहवि । ता निस्सल्लो पव्वज-मेक्कचित्तो करेजमऽहं ।।३८१८|| मुणिणा पयंपियं भद्द !, जइ तुमं विसवसा मओ होतो। ता कह लहुग भाउग-मऽवलाईतो सि एवं च ॥३८१९।। परिचय पडिबंधमिमं, निरत्ययं सरसु धम्ममऽणवज। भाइ-पिइ-माइतुल्लो, एको एसो च्चिय जियाग ॥३८२०॥ एवं मुणिणा भणिए, सयंभुदत्तो परेण विणएण। पडिवाइ पचज', कुणइ विचित्तं तबोकम्म ॥३८२१।। विहरइ गुरुणा सद्धि', गामाऽऽगरनगरसंकुल वसुह। दुस्सहपरीसहचमु, अहियासितो महासत्तो ॥३८२२॥ एवं च चिर कालं, विहरित्ता नाणदंसणसमग्गो। थोवाऽऽयं च नाउ, भत्तपरिन्न' पवज्जतो ॥३८२३॥ गुरुणा पन्नविओ सो, अहो महाभाग! पुन्नभरलन्भ। पञ्जतकालियमिम, सविसेसाऽऽराहणविहाणं ॥३८२४|| ।।२९७॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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