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________________ संवेगरंगसाला अहवा जम्मो मरणेण, जोव्वणं सह जराए संजोगो। सममेव वियोगेणं, उप्पञ्जइ किमिह सोगेण ॥३७८७।। एवं परिभा-तो, जा वच्छच्छायमऽणुसरइ सिसिर । ता तरुणो हेट्ठठियं, चारणसमणं महासत्तं ॥३७८८॥ सुत्त' परियत्तत, विचित्तनयभंगसंगबिगम । पेच्छह पउमासणवन्ध-धीरमुवरुद्धमणपसर' ॥३७८९॥ विसमविमोरगविसविहु-रियस्स भयव ! ममेत्थ पत्थावे । सरणं तुमति जंपिय, विचेयणो तयणु सो पडिओ॥३७९०॥ अह त विसवसनिन्नट्ठ-चेयणं पेच्छिऊण करुणाए । परिचितइ मुणिवसभो, किमियाणि जुञ्जए काउं॥३७९१।। पावपओयणनिरयाण, नो गिहत्थाण ताव उबयारे। वट्टिउमुचिय' साहूण, सबभूयऽप्पभूयाण ॥३७९२॥ ताणुवयारे तबिहिय-पावट्ठाणाण कारणं जम्हा । निरवजवित्तिणो वि हु, भवंति गिहिसंगदोसेणं ॥३७९३।। जइ पुण ते उवयरिया, मोत्तूण सव्वसंगमऽचिरेण । पडिवजिय पव्वज, जयंति सद्धम्मकजेसु ॥३७९४।। ता होज तक्या नि-जरा वि इय चिन्तिरस्स समगस्स। अनिमित्तमेव सहसा, विष्फुरिथं दाहिण नयणं ॥३७९५॥ तो तदुवयारमाऽभो-गिऊण दट्टण से भुयगदंसं । चरणोवरिम्मि सुहुमं, बियाररहियं च मुणिवसभो ॥३७९६।। परिभावइ नूणमिमो, जीविस्सइ जग दंसठाणमिम । अविरुद्ध सिरपमुहाणि, चेव सत्थे विरुद्धाणि ॥३७९७|| तहाहिसीसे लिंगे चिबुए, कंठे २सखेसु तह गुदे य थणे। ओट्टे वच्छयलम्मि य, भुमयासु नामिनासउडे ॥३७९८॥ १ चिबुके = ना नायना भागमा २ झाङ्ग्वेषु = मामना नना भयकोने विषे । मुनेः सर्पदष्टस्वयम्भूदत्तस्य दर्शन उपकारचिन्ता विरुद्वाविरुद्धदंशस्थानस्वरूपम् च। २९५|| ॥२९५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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