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इगिनी
संवेगरंगसाला
मरण
स्वरूपम् ।
॥२७८॥
अरिहाऽऽइअंतिगे सो, सीसम्मि कयंजली विसुद्धमणो । आलोयणं च दाउ, वोसिरइ चउविहाऽऽहार ॥३५६८॥ सयमेव अप्पणो सो, करेइ आउंटणाऽऽइकिरियाओ। उच्चाराऽऽइ विगिचइ, सयं च सम्मं निरुवसग्गो॥३५६९।। जाहे पुण उवसग्गा, दिव्वा माणुस्सया व से होजा । ताहे निप्पडिकंपो, ते अहिंयासेइ विगयभयो ॥३५७०॥ पत्थिजतो वि ततो, किंनरकिं पुरिसदेवकन्नाहिं । न य सो तहावि खुब्भइ, न विम्हयं कुणइ रिद्धीए॥३५७१॥ जइ से दुकुखत्ताए, सव्वे वि हु पोग्गला परिणमेजा। तहवि नसे थेवा वि हु, विसुत्तिया होइ झाणस्स॥३५७२।। जइ सव्वपोग्गलचओ, अहव सुहत्ताए तस्स परिणमइ । तह विन से संजायइ, विसोत्तिया सुद्धझाणस्स ॥३५७३।। सच्चित्ते साहरिओ, सो तत्थुप्पिकखए विमुकंगो। उवसंते. उवसग्गे, जयणाए थंडिलमुवेइ ॥३५७४।। वायणपरियट्टणपुच्छणाओ, मोत्तृण तह य धम्मकहं । सुत्तऽत्थपोरिसीए, सरेइ सुत्तं च एगमणो ॥३५७५।। एवं अट्ठ वि जामे, अनुअट्टो झायए पसन्नमणो। आहच्च निदभावे वि, नऽस्थि थे पि सइनासा ॥३५७६॥ सज्झायकालपडिले-हणाऽऽइयाओ न संति किरियाओ। जम्हा सुसागठाणे वि, तस्स झाणं न पडिकुटुं॥३५७७।।
आवासयं च सो कुणइ, उभयकालं पि जं जहिं कमइ। उबहि पडिलेहेइ य, मिच्छकारो य से खलिए ॥३५७८॥ । वेउब्धियआहारग-चारणखीरासवाऽऽइलद्वीओ। कज्जे वि समुप्पन्ने, विरागभावा न सेवइ सो ॥३५७९।। मोणाऽभिग्गहनिरओ, आयरियाऽऽण पुट्ठवागरगो। देवेहि माणुसेहि य, पुट्ठो धम्मकहं कहइ ॥३५८०॥ एवं इंगिणिमरणं, सुयाऽणुसारेण साहियं सम्मं । प अवगमणमेत्तो, समासओ चेव वनिस्सं ॥३५८१॥
कजे विस डलहेइ य, मिल
॥२७८॥
आयरियाऽऽण
|| एवं इंगिणिमा