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________________ संवेगरंगसाला रिटःमरणकालज्ञानम् । ॥२५४॥ अह त सकरंगुलिचंपियस्स, इयरच्छिणो न पेच्छइ जो। दस पंच तिनि दो वा-सरे उ तज्जीवियं जाण ॥३२६३।। अणविकिखयऽनलकरख', अहोमुहाऽऽवडियलोयणुद्धउड। परिमंथरथिरतारं, नासग्गासंगिदिद्विजुय ॥३२६४|| जह होइ तहा १निययं, निययं जो नासियं नियंतो वि।न हु पिच्छइ सो गच्छइ, २हत्थं पंचाऽहमित्तेण ॥३२६५।। एवं चिय जीहग्गं, नियगमुहा निग्गयं नियंतो वि। जो न हु पिच्छइ अच्छइ, सो परमेगं अहोरत्तं ॥३२६६।। तह भूमिगाऽणुरूवं, होऊणं परमदव्वभावसुई। काऊण परमपूयं, परमगुरूणं परमविहिणा ॥३२६७॥ सुक्किलपकख दकिखण-पाणि परिकप्पि कमेण पुगो। हेद्विममज्झिमउवरिम-पव्वाणि कणिट्ठियाए य ॥३२६८॥ पडिवयछद्विक्कारसि-तिहीओ परिकप्पि पयाहिणओ। सेसंगुलिपव्वेसु तु, सेसतिहीओ वियप्पेज्जा ॥३२६९।। पंचमिदसमीपुन्निम-तिहीओ ता जाव ठविय अंगुटे। एवं वामकरे पुण, परिकप्पिय कसिणपकूखकमं॥३२७०॥ ता जाव तदंगुढे, उवरिमपव्वे अमावसाऽईए। एवं तीस तिहीओ, परिकप्पित्ता जहाभणिय ॥३२७१।। तत्तो विवित्तदेसे, निबद्धपउमासणो महासत्तो। बद्धकरकमलकोसो, पसण्णथिरमणवईकाओं ॥३२७२।। झाएज्ज कसिणवन्न', सुन्न करकमलकोसमझगय। सियवस्थछाइयऽप्पा, सुबद्धलकूखो तहि चेव ॥३२७३।। उन्धाडिय करकमलं, पलोइओ जीए कीए वि तिहीए। दीसइ स कालबिंद, सो कालो नत्थि संदेहो ॥३२७४॥ जम्मन्तरलकखेण वि, न मुणिजइ कह वि अप्पणो अप्पा। सयलसमयण्णुणा वि हु, सिरिगुरुवयणं पमोत्तणं ।।३२७५॥ इय कालचक्कसारं, गाहादसगेण वनियमिम च । पडिवयदिवसे झायह, ३जि पेच्छह आगय मच्चु ॥३२७६॥ १ नियतम् । २ शीघ्रम् । ३ यथा । ॥२५४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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