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________________ संवेगरंगसाला एएसि जमगहणं, पमायओ भंसणा व गहियाण । एसो उ अइयारो, भणितो आलोयणाविसओ ॥३०४५॥ इय देसचरणविसए, अइयारे वियडिउँ अह जइ ब्व । तवविरियदसणगए वि, नूण वियडेज्ज अइयारे ॥३०४६॥ आलोचनायाः विषयाः। तहा ॥२३७॥ साहुसाहुणिवग्गे, गिलाणओसहनिरूवण न कयं । जिणइंदमंदिराऽईसु, पमज्जणाई य ज न कय ॥३०४७|| चेइयभवणंऽतो जं, सुत्तं भुत्तं च पीयऽमह जं च । जं पाणिपायपमुह-पकूखालणत च वियडेज्जा ॥३०४८॥ तंबूलभक्खणांवील-खेलसिंघाणजेल्लखिवणाई । तह साहणाइयं वाल-विउरण तह जिणगिहंऽता ॥३०४९॥ ___ जमऽणुचियाऽऽसणगहणं, असक्कहा वि य जिणिंदभवणऽतो । विहिया तं सव्वं पि हु, जिणभत्तिपरो उ वियडेज्जा ॥ ॥३०५०॥ जं चेइयदखुवेजीवण च, रागाइणा कह वि विहियं । विवलायंत चेइय-दव्वं समुवेक्खियं जं च ॥३०५१।। आसायणा अवन्ना, अरहंताऽऽईण जा कया का वि । तं सम्मं सव्वं पि हु, वियडेज्जा अत्तसोहिकए ॥३०५२।। धम्मगुणसंजुयाण, निच्च उववृहणाइ जं न कयं । जं मच्छरदोसुब्भा-वणाइकरण पि त वियडे ॥३०५३॥ कि बहुणा जं किंपि हु, कहिं पि पडिसिद्धकरणमिह विहियं । कायब्वाणमऽकरणं, करणे वि हु जं न सम्मकयं ॥ १ विचलगयतं = विपलायमानं = विनश्यद् इत्यर्थः ।२. 194604, 3. YouT.मला ॥२३॥ ॥३०५४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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