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________________ मवेग गुरुस्तुतिः। ग्गमाला ॥२३४॥ परमूसवठाणट्ठविय-समयविहिसारमरणकालस्स । अञ्चन्तं जुत्तमिम, तुह काउं एत्थ पत्यावे ॥३००४॥ आलोइऊण नवरं, पडिवनगुणाऽइयारमुज्जुत्तो । मणवंछियं महायस!, करेसु निरवजपयज्ज ॥३००५॥ एवं चिय गिहिणो पाउणंति, चिरचिन्नसुगिहिधम्मस्स । फलमऽहवा पजते, संथारगदिक्खगहणेण ॥३००६।। तदऽसंपत्तीए पुण, सामाइयभावपरिणया संता । सुमुणि व्व चत्तसंगा, भत्तपरिणं पवज्जेति ॥३००७॥ इच्छामो अणुसट्टि ति, कटु बहुमन्नि गुरुगिरं सो । चिरकालपुन्नवंछो त्ति, कि पि इय जंपइ सखेयं ॥३००८।। अहह ! न कहिँपि भयवं !, विनाओ वि हु मए अपुन्नेण । एत्तियमेतं कालं, अच्छउ ता दंगणं तुम्ह ॥३००९।। अहवा चिट्ठउ दंसण-छायासेवाइसंभवो ताव । कह कप्पपायवं पइ-विन्नाणं पि हु अपुन्नाण ॥३०१०।। सयलपुहवीपयाणं, पयडपयावो वि जह सहस्सकरो । निच्चमऽविभाउ च्चिय, सहावतामसखगकुलस्स ॥३०११।। एवं ममावि सामिय!, मोहमहातामसेक्पयइस्स । विगुणस्स य अञ्च तं, कह व तुमं दसणं एसि ॥३०१२।। एस पुण मोहमइलस्स, मज्झ दोसो न चेव पहु! तुज्झ । पयडो च्चिय दिणनाहो, उलुएग अदीसमाणोवि ॥३०१३।। अणुपयमऽक्वलियप्पसर-प्पसरंतसुकंतकित्तिकोस! तुमं । इह कत्थ कत्थ लह केण, केण भयवं ! न विनाओ ।।३०१४|| अवि यवासावजविहारी, जइ वि य न विकत्थए गुणे नियए । अभणंतो च्चिय नजइ, पयइ चिय सा गुणगणाणं ॥३०१५।। भमरेहि महुयरीहि य, सेविज्जइ जह विसिद्वगंधेणं । पाउसकालकयंबो, तह नाह ! तुम पि लोएण ॥३०१६।। ॥२३४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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