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________________ संवेगरंगसाला आराधनाहस्वरूपम् ॥६५॥ चाओ १० मरणविहत्ती ११, अहिगयमरगं च १२ सीइदारं च १३, तह भावणाण दारं १४, चरिमं संलेहणादारं १५ ॥८०९॥ अरिहो जोग्गो भन्नइ, सो पुण आराहगाए नायव्यो । सामन्तमन्तिसत्थाह-सेडिकोडुबियाईणं ॥८१०॥ राईसरसेगावइ-कुमारपभिईणमऽवमन्नयरो । तेसिमऽविरुद्धकारी, विरुद्धसंसग्गिपरिहारी ॥८११॥ जो जइणो चिन्तामणि-कप्पे त्ति करेइ तीए बहुमाणं । पत्थेइ थिरणुराओ, जो जइसज्झत्तमच्चत्थं ॥८१२॥ आराहणारिहेसु य, जो वच्छलं करेइ अणवरयं । भावेइ दुल्लहत्तं, तीए धम्मे पमाईणं ॥८१३॥ आलोएइ य निच्चं, मच्चु पच्चूहमीहियत्थाणं । तस्स य निरोहसाहण-माराहणमेव भावेइ ॥८१४॥ अरिहन्तेसु य पूया-सकूकारं कुणइ निच्चमुज्जुत्तो । भावेइ य गुणगुरुयं, तेसि गुणमणिकरंडाणं ॥८१५॥ पबयणपसंसणाए, रमेइ विरमेइ धम्मनिन्दाओ । गुणगुरुगुरुभत्तीए, सत्तीए सजइ निच्च ॥८१६॥ सुमणे समणे वन्दइ, सुठ्ठ निन्देइ णिययदुचरियं । गुणसुटिएसु रजइ, सजइ सइ सीलसच्चेसु ॥८१७॥ वज्जेइ कुसंसग्गि, संसग्गि कुणइ सीलवन्तेहिं । निच्च पि गुणे गिण्हइ, परस्स सन्ते वि नो दोसे ॥८१८॥ दुट्ठपमायपिसाए, निहणेइ हणेइ इंदियमईदे । ताडेइ य दुचरियं, मणमकडमुक्कदुपयारं ॥८१९॥ नाणं सुणेइ नाणं गुणेइ, नाणेण कुणइ किच्चाई। नाणाहिएसु रजई, अणुसजइ नाणदाणम्मि ॥८२०॥ • १ शानाधिकेषु । ॥६५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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