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जंबूद्वीप संघयणीप्रकरणम्
अर्थसहितम्
॥४५॥
torrattutto
अर्थ-(चउतीस वियड्डेसु) वैताढ्यनामके चोतीश पर्वतांपर, व (विजुप्पह) विद्युत् प्रभ नामका गजदंत गिरि स्तथा (निसढ) निषध गिरि स्तथा (नीलवंतेसु) नीलवंत गिरि (तह) तेसेहि (मालवंत) माल्यवंत नामका गजदंत गिरिस्त था (सुरगिरि) मेरुगिरि, यह एक कम चालीश पर्वतांपर (पत्तेयं) प्रत्येके २(नव नव कूडाई) नव नव कूट
है ॥ एवं पूर्वके और यह मिलकर (४४५) कूट हुए ॥१४॥ * भावार्थ-चोतीश लम्बे वैताब्य व एक विद्युत्प्रभ, दुसरा निषध, तीसरा नीलवंत, चोथा माल्यवंत पांचमा
सुमेरु इन उन चालीश पर्वतांपर, नव २ कूट होनेसे तीनसो इकावन कूट हुए, और पूर्वके मिलानेसे (४४५) कूट द्र होते है ॥१४॥
हिम सिहरिसु इक्कारस, इय इगसढि गिरीसु कूडाणं। एगत्ते सबधणं, सय चउरो सत्तसट्ठीयं ॥१५॥ हूँ - अर्थ-(हिम ) हिमवंत गिरिस्तथा (सिहरिसु) शिखरी पर्वत, इन प्रत्येकपर (इक्कारस) इग्यारा २ कूट है, (इय) है
यह (इगसहि गिरीसु) सर्व इगसठ्ठ पर्वतोपर जो (कूडाणं) कुट हैं उसको (एगत्ते) एकत्व करणेसे (सबधणं) सर्व |संख्या (सयचउरो) च्यारसे (सत्तसठ्ठीयं) सडसठ कूट (शिखर) होते हैं ॥१५॥ | भावार्थ-हिमवंत और शिखरी इन दोनों पर्वतोंपर इग्यारा २ कूट है, एवं सर्व इगसठ पर्वतांपर च्यारसो सडसठ (४६७) कूट होते है ॥ १५॥
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