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________________ F अर्थ जंबूद्वीप देवकुरु उत्तरकुरु यह दो युगलियांके क्षेत्र छोडकर, शेष च्यार क्षेत्रों के अंदर (वियह चउवद्य) वर्तुल वैताब्य च्यारा संघयणी- है. फिर (इयरे) इन वैताब्योंसे इतर (चउरतीस) चउतीस लम्बे वैताढ्य पर्वत है, पुनः (सोलसवक्खारगिरि) सहितम् प्रकरणम् शोले वक्खारागिरि “विजयांके अंतरमे है" फिर (चित्त विचित्त) १ चित्त २ विचित्त यह दो पर्वत और है. इतर | लदो पर्वत, (जमगा) एक जमग दुसरा समग ॥११॥ ॥४४॥ भावार्थ-भरत १ हेमवत २ हरिवर्ष ३ महाविदेह ४ रम्यक ५ हिरण्यवत ६ एरवत ७ यह सातवाश क्षेत्र है॥ | देवकुर, उत्तरकुरु इन दोनो क्षेत्रोंको छोड शेष च्यार क्षेत्रोंमें वर्तुल वैताब्य एक एक है. इनसे भिन्न चोतीश लम्बे, वैताब्य, शोले वक्खारा गिरि, दो. चित्त १ विचित्त २ दो. जमग १ और समग २ यह सब मिल अठ्ठावन शास्वते पर्वत, शेष आगे ॥११॥ 8| दोसय कणय गिरीणं, चउ गयदंताय तह सुमेरुय । छवासहरापिंडे, एगुणसत्तरिसयादुन्नी ॥१२॥ अर्थ-देवकुरु और उत्तरकुरु इन प्रत्येक क्षेत्रमें पांच २ द्रह है. और एकैक द्रहके उभयतर्फ दश २ कंचनगिरि है,। अतः इन सबको मिलानेसै (दोसयकणयगिरीणं) दोसो (२००) कंचनगिरि होते है, (च) फिर (चउगयदंता)18 च्यार गजदंते पर्वत है. (तह) तैसे (सुमेरु) एक सुमेरु (च) और इनके दोनो तर्फ, तीन २ मिलकर (छ) छ (वासहरा) वर्षधर, पर्वत है, इन सबको (पिंडे ) इकठाकरणेसै (सयादुन्नी) दोसो (एगुणसत्तरि ) एक कम सित्तर ॥४४॥ पर्वत होते है ॥१२॥ UCAKACANCIES CARRINAKARSA कणगिरीणं ) दोसो (२००, और एकैक दहके उभयतर्फ द जदंते पर्वत है. (तह
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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