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________________ जंबूद्वीप संघयणी प्रकरणम् ॥ ४३ ॥ परिही तिलक्खसोलस, सहस्स दोसय सत्तावीस हिया । कोसतिग अट्ठावीसं, धणुसय तेरंगुलद्धहियं ॥ ८ ॥ अर्थ - जंबुद्वीपका विष्कंभ एक लाख योजनका है. उसकी ( परिही ) परिधी (तिलक्ख सोलस सहस्स) तीन लाख शोले हजार (दोसय सत्तावीस हिया) दोसो सत्ताईस योजन अधिक ( कोसतिग) तीन कोश ( सय) एकसो (अठ्ठावीसं ) अठाइस ( धणु ) धनुष्य और ( तेरंगुलद्बहियं ) सार्धत्रयोदशांगुल जंबुद्वीपकी जानना ॥ ८ ॥ (परिशिष्ट ) इस परिधीको जंबुद्वीपके विष्कंभ प्रमाणसे चतुर्थांश निकाल उससे गुणाकरे तब जंबुद्वीपका गणितपद ( क्षेत्रफल ) होता है उसकी संख्या नीचेकी गाथासें दिखाते है । भावार्थ - जंबुद्वीपका विष्कंभ एक लाख योजनका है. जिसकी परिधी "तीन लाख शोले हजार दोसो सत्ताईश योजन तीन कोप”. एकसो अठ्ठाईश धनुष साढातेरा अंगुल (३१६२२७ ) योजन ( ३ ) कोष ( १२८ ) धनुष्य ( १३ ॥ ) अंगुल ) होती है ॥ ८ ॥ | सत्तेवय कोडिसया, णउआ छप्पन्नसयसहस्साईं । चउणउयं च सहस्सा, सयंदिवडुं च साहियं ॥ ९ ॥ अर्थ - (य) जो ( सत्तेव ) सात (सया) शतानि ( सो ) ( कोडी ) क्रोडोपरी ( णउआ ) निवे क्रोड " याने सातसें अर्थसहितम् ॥ ४३ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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