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________________ तिर्यचका (सुरनिरयसागरतितीसा ) देवता और नारकका उत्कृष्ट आयु तेतीस सागरोपमका होता है (वंतरपलं) व्यंतरका आयु एक पल्योपमका ( जोइस) और ज्योतिषी देवोका आयु ( वरिसलख्खा हिअंपलिअं ) एकलाख वर्ष अधिक एक पल्योपमका होता है ॥ २५ ॥ असुराणअहियअयरं देसूणदुपल्लयंनवनिकाए । बारसवासुणपणदिण छम्मासउक्किट्ठविगलाऊ ॥ २६ ॥ (असुराणअहियअयरं ) असुरकुमारनिकायका आयु एक सागरोपमसें कुछ अधिक होता है (देसूणदुपल्लयंनव निकाए) शेषनवनिकायका आयु देसेउणा दो पल्योपमका होता है ( वारसवासुणपणदिण ) बेइंद्रीका बारह वर्ष और तेइंद्रीका गुण पचास दिन ( छम्मासउक्किट्ठविगलाऊ ) चउरिंद्रीका छ मासका उत्कृष्ट आयु अनुक्रमसें समज लेना ॥ २६ ॥ पुढवाइदसपयाणं अंतमुहुत्तं जहन्नआउठिई । दससहसवरिसठिइआ भवणाहिवनिरयवंतरिया ॥२७॥ (पुढवाइदसपयाणं ) पृथ्वीकायादि दशपदकी पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रि पंचेंद्रितिर्यंच और मनुष्यका (अंतमुहुतंजहन्न आउठिई ) जघन्यसे आयुकी स्थिति अंतर्मुहुर्त्तकी कही है ( दुससहसवरिसठिइआ ) दश हजार वर्षकी आयुस्थिति जघन्य से ( भवणाहिव निरयवंतरिया) दश भुवनपति नारंक और व्यंतरीककी कही है ॥ २७ ॥ वेमाणि जोइसिया पलतसआउआहु॑ति । सुरनरतिरिनिरएसु छपजत्तीथावरेचउमं ॥ २८ ॥ ( वेमाणि जोइसिया ) वैमानिक और ज्योतिषीका आयु जघन्यसें ( पल्लतयहंस आउआहुति ) एक पल्योपमके आठमे
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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