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________________ नवतत्त्व सार्थ SLOGASCISC PROGRAMSAROSAROSAROSEX संतपयपरूवणया दवपमाणंचखित्तफुसणाय । कालोअअंतरभाग भावेअप्पाबहुचेव ॥ ४३॥ | भाषाटी(संतपयपरूवणया) सत्पदकी प्ररूपणाद्वार १ (दवपमाणं) फिर सिद्धजीवोंके द्रव्यका प्रमाणद्वार २ (खित ) क्षेत्र- कासहित. द्वार ३ (फूसणाय) सिद्धोकी स्पर्शनाद्वार ४ (कालोअ) कालद्वार ५ (अंतर) अन्तरद्वार ६ (भाग) भागद्वार ७ (भाव) भावद्वार ८ (अप्पाबहु) और अल्पाबहुत्वद्वार ९ (चेव) निश्चे यह मोक्षके नव द्वार कहै ॥ ४३ ॥ संतंसुद्धपयत्ता विजंतंखकुसुमबनअसंतं । मुक्खत्तिपयंतस्सउ परूवणामग्गणाईहिं ॥ ४४ ॥ (संतं) मोक्ष छतो है (सुद्ध) शुद्ध (पयत्ता) पद होनेसे (विजत्खकुसुमबनअसंत्तं) यह विद्यमान है परन्तु वह आकाशके कुसुमकी तरह अछतो नहीं हैं (मुक्खत्तिपयंतस्सउ) यह मोक्षपदकी (परूवणा) प्ररूपणा (मग्गणाईहिं) मार्गणाद्वारो विचारसे कहते हैं ॥४४॥ गइइंदीएकाय जोएवेयकसायनाणेय । संजमदंसणलेसा भवसम्मे सन्नि आहारे ॥ ४५ ॥ (गइ) गतिमार्गणा ४ (इंदीए ) इंद्रिमार्गणा ५ ( काय) कायमार्गणा ६ (जोए) योगमार्गणा ३ (वेय ) वेदमार्गणा ३२ (कसाय) कषायमार्गणा ४ (नाणेय) ज्ञानमार्गणा ८ (संजम) संयममार्गणा ७ (दसण) दर्शनमार्गणा ४ (लेसा)। लेश्यामार्गणा ६ (भव) भव्यमार्गणा २ (सम्मे) सम्यक्त्वमार्गणा ६ (सन्नि) संनिमार्गणां २ (आहारे) आहार- ॥३०॥ मार्गणा २॥४५॥ U SSISSAROS
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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