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________________ को क्रिया लगती है वह अप्रत्यासियरक स्त्री आदिकके अंगका सामंतोवणीअ) अपना अन्च भरे उससें लगे जीव भाषाटीकासहित. विचार ॥२५॥ ४ करनेसें जो क्रिया लगती है वह अप्रत्याख्यानिकी क्रिया १० (दिट्ठि) जो अशुभ दृष्टीसें देखना सो दृष्टीकी क्रिया ११ (पुद्विअ) जो रागादिकसे कलुषितचित्तकरके स्त्री आदिकके अंगका स्पर्श करना सो स्पृष्टीकी क्रिया १२ (पाडुच्चिअ) जो अपने मनसे स्वपरका बुरा विचारना सो प्रातीत्यकीक्रिका १३ (सामंतोवणीअ) अपना अश्व प्रमुखकी प्रशंसासें ४ हर्ष करना सो अथवा दुध दही घी आदिके भाजन खुलां रखनेसें उसमें जो त्रसआदि जीवपडकर मरे उसमें लगे सो सामंतोपनिपातीकी क्रिया १४ (नेसत्थि) नैशस्त्रकी क्रिया १५ (साहत्थि) स्वस्तिकी क्रिया १६॥२३॥ आणवणिविआरणिआ अणभोगाअणवकंखपच्चइआ।अन्नापओगसमुदा-णपिज्जदोसेरिआवहिआ २४ (आणवणि) जो जीव अजीवको लाने लेजानेसें क्रिया लगे उसको आनयनिकी क्रिया कहते है १७ (विआरणिआ) जो जीव अजीवको विदारनेसें विदारणि लगेसो विदारणकी क्रिया १८ (अणभोगा) विना उपयोगसें जो चीज रकम उठाना रखना तथा हलने चलनेसें जो क्रिया लगे उसे अनाभोगिकी क्रिया कहते है १९ (अणवकंखपच्चइआ) इस लोक तथा परलोकसें जो विरुद्ध आचरण करना उसे अनवकांक्षप्रत्ययिकी क्रिया कहते है २० (अन्नापओग) दुसरी प्रयोगिकी क्रिया २१ (समुदाण) समुदायकी क्रिया २२ (पिज्ज) माया और लोभ करनेसें जो क्रिया लगे उसे प्रेमकी क्रिया कहते है २३ (दोसे) क्रोध और मानसें जो क्रिया लगे उसे द्वेषकी क्रिया कहते है २४ (इरिआवहिआ) रस्ते चलनेसें शरीरके व्यापारसें जो क्रिया लगे उसे इर्यापथिकी क्रिया कहते है २५ पच्चीसमी क्रिया अप्रमत्तसाधुसैलेके तथा सयोगी केवलीपर्यंतको भी लगति हैं ॥ २४ ॥ इति आश्रवतत्वम् ॥ SACROADCASCARROCK
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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