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________________ नवतत्त्वसार्थ भाषाटीकासहित. (एगाकोडि ) एक क्रोड (सतसठिलख्खा) सडलठ लाख (सत्तहुत्तरीसहस्साय) सित्तोतर हजार (दोयसयासोल६ हिया) दोसो सोलह अधिक (आवलिया) १६७७७२१६ अवलिका (इग) एक (मुहुत्तम्मि) मुहूर्तके विषे होती है ॥१२॥ समयावलीमुहुत्तं दीहापख्खायमासवरिसाय।भणिओपलिआसागर उस्सप्पिणीसप्पिणीकालो ॥१३॥ (समय) समय, अतिसुक्ष्म कालको समय कहते है ऐसे असंख्य समयकी (आवली) एक आवलिका होती है (मुहुत्तं) दो घडीका मुहूर्त मुहूरतकालका प्रमाण आवलीकी संख्यासें पूर्वकी बारवी गाथासें जाणलेना (दीहा ) ऐसे तीस मुहर्तका एक अहोरात्री दिन (पख्खा) ऐसे पंद्रह दिनका एक पक्ष (य) और (मास) ऐसे दो पक्षका एक मास (वरिसा) ऐसे बारह मासका एक वर्ष (य) और (भणिओ) कहा है (पलिआ) ऐसे असंख्य वर्षका कूपदृष्टांतकरके एक पल्योपम, ऐसे दश कोडाकोडी पल्योपमका (सागर) एक सागरोपम, ऐसे दश कोडाकोडी सागरोपममिलनेसें एक (उस्सप्पिणी) उत्सर्पिणी और ऐसे दश कोडाकोडी सागरोपमकी एक (सप्पिणी) अवसर्पिणी होती है (कालो) ऐसे उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी मिलकर २० कोडाक्रोड सागरका एक कालचक्र और ऐसे अनंते कालचक्र जानेपर एक पुद्गल परावरतन होता है। ऐसा अनंता पुद्गल परावर्तन होचुके और आगे होवेंगे इति कालद्रव्यका मान कहा ॥१३॥ परिणामिजीवमुत्तं सपएसाएगखित्तकिरिआय । णिचंकारणकत्ता सव्वगयइयरअप्पवेसे ॥१४॥ (परिणामि) छ द्रव्यमें परीणामी कितना और अपरीणामी कितना निश्चयनयसें तो छेही द्रव्य परिणामी है और ॥२२॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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