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________________ जीवविचार ॥ १८ ॥ भावार्थ - प्रत्येक वनस्पतिकायकी दस लाख; साधारण वनस्पतिकायकी चौदह लाख; द्वीन्द्रियकी दो लाख; त्रीन्द्रियकी दो लाख चतुरिन्द्रियकी दो लाख और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंकी चार लाख योनियाँ हैं. चउरो चउरो नारय, सुरेसु मणुआण चउदस हवंति । संपिंडिया य सवे, चुलसी लक्खाउ जोणीणं॥४७॥ ( नारय सुरेसु ) नारक और देवोंकी ( चउरो चउरो ) चार चार लाख योनियाँ हैं; ( मणुआण ) मनुष्योंकी ( चउदस ) चौदह लाख (हवंति ) हैं; (सबै) सब ( संपिंडिया ) इकट्ठी की जायँ मिलाई जायँ तो ( जोणीणं ) योनियोंकी -सङ्ख्या ( चुलसी लक्खाउ ) चौरासी लाख होती है ॥ ४७ ॥ भावार्थ- नारक जीवोंकी चार लाख, देवोंकी चार लाख और मनुष्योंकी चौदह लाख योनियाँ हैं. योनियोंकी सब संख्या मिलानेपर चौरासी लाख होती है. सिद्धाण नत्थि देहो; न आउ कम्मं न पाण जोणीओ। साइ- अनंता तेसिं, ठिई जिनिंदागमे भणिया ॥४८॥ ( सिद्धाण) सिद्ध जीवोंको ( देहो ) शरीर ( नत्थि ) नहीं है, ( न आउ कम्मं ) आयु और कर्म नहीं है, ( न पाण जोणीओ) प्राण और योनि नहीं है, ( तेसिं ) उनकी ( ठिई) स्थिति ( साइ अणंता ) सादि और अनन्त है; यह बात ( जिनिंदा गमे ) जैन सिद्धान्त में ( भणिया ) कही गई है ॥ ४८ ॥ भावार्थ – सिद्ध जीवोंको शरीर नहीं है इसलिये आयु और कर्म भी नहीं है, आयुके न होनेसे प्राण और योनि भाषाटीकासहित. ॥ १८ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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