SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा कोइक फलरूप लिंगे करीने जे अजाण्या पदार्थनो निर्धार करिये ते अर्थापत्ति प्रमाण कहियें. जेम देवदत्तनो पीन के० पुष्ट शरीर छे पण ते देवदत्त दिवसनो जमतो नथी तेवारें अर्थापत्तिथी जाणीयें जे रात्रें जमतो हशे माटे पुष्ट शरीर छे. एम अर्थापत्ति प्रमाण जाणवो. ए प्रमाण ते जाते अनुमाननो अंश छे ते माटे श्री अनुयोगद्वारमां प्रथम कह्यो नथी. इहां दर्शनांतरीयो जे प्रमाण माने छे पण ते सत्य नथी जेम छ प्रकारना इंद्रिय सन्निकर्षथी ऊपनो जे ज्ञान तेने नैयायिक प्रत्यक्ष प्रमाण कहे छे, अने परब्रह्मने इंद्रिय रहित माने छे ज्ञानानंदमयी माने छे तेवारें इंद्रिय रहित ज्ञान ते अप्रमाण थाय छे. इत्यादिक अनेक युक्ति छे ते माटे ते प्रमाण नही. तथा चार्वाक मतवाला मात्र एक इंद्रियप्रत्यक्षनेज प्रमाण माने छे एम दर्शनांतरीयना अनेक विकल्प टालीने सर्व नय निक्षेप सप्तभंगी स्याद्वादयुक्त जे वस्तु जीव तथा अजीवनो जो सम्यक् ज्ञान जेनामां होय तेने सम्यक् ज्ञानी कहियें ए ज्ञाननुं स्वरूप क. तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं । यथार्थहेयोपादेयपरीक्षायुक्त (ज्ञानेन) ज्ञानं सम्यग्ज्ञानं । खरूपरमपरपरित्यागरूपं चारित्रं । एतद्रत्नत्रयीरूपमोक्षमार्गसाधनात्साध्यसिद्धिः । इत्यनेनात्मनः स्वीयं स्वरूपं सम्यग्ज्ञानं ज्ञानप्रकर्ष एवात्मलाभः ज्ञानदर्शनोपयोगलक्षण एवात्मा छद्मस्थानां च प्रथमं दर्शनोपयोगः केवलिनां प्रथमं ज्ञानोपयोगः पश्चादर्शनोपयोगः सहकारीकर्तृत्वप्रयोगात्
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy