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________________ | हवे नैगमनयनुं स्वरूप कहे छे. जे धर्मने प्रधानपणे अथवा गौणपणे अथवा धर्मीने प्रधानपणे अथवा गौणपणे तथा धर्म धर्मी ए बेउने प्रधानपणे तथा गौणपणे जे गवेषवो एटले धर्मोनी प्राधान्यता ते वारे पर्यायोनी प्रधानता थियी अने जिहां धर्मीनो प्रधानपणो तिहां द्रव्यनो प्रधानपणो तेमज गौणपणो तथा धर्म धर्मीनो प्रधान गौणपणो ए रीते जे द्रव्य पर्यायनो गौण प्रधानपणानी गवेषणा रूप ज्ञानोपयोग ते नैगमनय जाणवो तेना बोधने नैगम बोध कहिये तेना उदाहरण कहेछे. | सत् के० छतापणे चैतन्य के० जाणपणो ए बे धर्म मध्ये एक धर्म पक्ष मुख्यपणे गणे अने बीजाने गौणपणे न * गवेषे. ए रीतें नैगमनय जाणवो. इहां चैतन्य नामे जे व्यंजन पर्याय तेने प्रधानपणे गणे केमके चैतन्यपणो ते विशेष । गुण छे अने सत्वनामा व्यंजन पर्याय छे ते सकल द्रव्य साधारण छे ते माटे तेने गौणपणे लेखवे ए नैगमनो प्रथम भेद कह्यो. PI तथा बली "वस्तु पर्यायवद् द्रव्यं” एम बोलवू ते धर्मीनो नैगम छे इहां "पर्यायवत् द्रव्यं” एम वस्तु छे इहां द्रव्यनो मुख्यपणो वली वस्तुने पर्यायवंत कहेवं ते वस्तुनो गौणपणो अने पर्यायनो मुख्यपणो इहां उभयगोचरपणा माटे ए नैगमनो बीजो भेद कह्यो. - "क्षणमेकः सुखी विषयासक्तो जीव इति धर्मधर्मिणोरिति” इहां विषयासक्त जीवाख्य जे धर्मिना मुख्यताना विशेपपणाथी सुखलक्षण धर्मनी प्रधानता ते विशेषणपणे करीने धर्मधर्मिने आलंबने ए त्रीजो नैगम जेवारे धर्म तथा धर्मि
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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