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________________ जीव विचार AGAGROA भाषाटीकासहित. CHAAREERAL भूमियाँ हुई, इनमें पैदा होनेसे मनुष्योंके भी उतने ही भेद हुए, इनके भी पर्याप्त और अपर्याप्त रूपसे दो भेद हैं, इसलिये दोसौ दो भेद हुए. इन गर्भज मनुष्योंके मल, कफ आदिमें जो मनुष्य पैदा होते हैं, वे संमूछिम कहलाते हैं तथा वे अपनी पर्याप्ति पूरी किये बिना ही मर जाते हैं। इनके-संमूर्छिम मनुष्यके-एकसौ एक भेदोंके साथ दोसौ दोको मिलानेसे मनुष्योंके तीनसौ तीन भेद होते हैं. दसहा भवणाहिवई, अट्ठविहा वाणमंतरा हुँति । जोइसिया पंचविहा, दुविहा वेमाणिया देवा ॥२४॥ । (भवणाहिवई) भवनाधिपति देवता, (दसहा) दशधा दस प्रकारके हैं, (वाणमंतरा) वानमन्तर देवता, (अट्ठद विहा) अष्टविधा-आठ प्रकारके, (हुंति) होते हैं, (जोइसिया) ज्योतिष्का-ज्योतिष्क देवता, (पंचविहा) पञ्चविधा-18 पाँच प्रकारके हैं और (वेमाणिया देवा) वैमानिक देवता, (दुविहा) दो प्रकारके हैं ॥२४॥ भावार्थ-भवनपति देवताओंके दस भेद हैं;-१ असुरकुमार, २ नागकुमार, ३ सुपर्णकुमार, ४ विद्युत्कुमार, ५ अग्निकुमार, ६ द्वीपकुमार, ७ उदधिकुमार, ८ दिक्कुमार, ९ वायुकुमार, और १० स्तनितकुमार. वानमन्तर-वाणव्यन्तर-देवताओंके आठ भेद हैं;-१ पिशाच, २ भूत, ३ यक्ष, ४ राक्षस, ५ किन्नर, ६ किंपुरुष, ७ महोरग, और ८ गान्धर्व. वाणव्यन्तर (वानमन्तर) के ये भी आठ भेद हैं;-१ अणपन्नी, २ पणपन्नी, ३ इसीवादी, ४ भूतवादी, ५ कन्दित, ६ महाकन्दित, ७ कोहण्ड, और ८ पतङ्ग. ज्योतिष्क देवताओंके पाँच भेद हैं;-१ चन्द्र, २ सूर्य, ३ ग्रह, ४ नक्षत्र, और ५ तारा. वैमानिक देवता दो प्रकारके है।-१ कल्पोपपन्न, और २ कल्पातीत. कल्प अर्थात् आचार CAAGANA
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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