SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णता, कार्यता, कारकता, ए शक्तिनी व्याख्या श्रीविशेषावश्यकें छे, भावुकता तथा अभावुकता शक्ति ते श्रीहरिभद्र-1 द्र सूरिकृत भावुक नामे प्रकरण मध्ये कहि छे. एम केटलीक शक्ति जैनना तर्कग्रंथो जे अनेकांतजयपताका सम्मति प्रमुखमा छे तथा ऊर्ध्वप्रचयशक्ति अने तिर्यक् | प्रचयशक्ति, ओघशक्ति, समुचितशक्ति, ए सर्व संमतिग्रंथने विषे छे. तथा जे द्विगुणी आत्मा माने ते सर्वधर्म शक्तिरूप |ज माने छे तेणे दानादिकलब्धि अव्याबाधसुख प्रमुख शक्ति मानी छे. इहां व्याख्यांतरे जे गुणकरण छे तेने कर्तादिकपणो ते सामर्थ्य छे, जाणवो देखवो ते कार्य छे, केटलीक शक्ति जीवमांज छे, अने केटलीक पंचास्तिकाय मध्ये छे. तथा देवसेनकृत नयचक्रमध्ये जीवने अचेतन स्वभाव, मूर्त स्वभाव, तथा पुद्गल परमाणुने चेतन स्वभाव, अमूर्त स्वभाव कह्या ते असत् छे, एतो आरोपपणे कोइक कहे ते कथनमात्र जाणवो. पण ए वात छतीमां नथी, जे धर्म आरोपें तथा उपचारें गवेषाय ते वस्तुनो धर्म नथी. उपाधिथी थाय छे, ते माटे जे उपाधि ते वस्तुनी सत्ता नथी एम धारवं. ___ धर्मास्तिकाये अमूर्त्ताचेतनाक्रियगतिसहायादयो गुणाः।अधर्मास्तिकाये अमूर्ती चेतनाक्रियस्थि तिसहकारादयो गुणाः। आकाशास्तिकाये अमूर्ताचेतनाक्रियावगाहनादयो गुणाः। पुद्गलास्तिकाये मूर्ताचेतनसक्रियपूरणगलनादयो वर्णगन्धरसस्पर्शादयो गुणाः। जीवास्तिकाये ज्ञानदर्शनचारित्रवीर्याऽव्याबाधामूर्ताऽगुरुलध्वनवगाहादयो गुणाः।एवं प्रतिद्रव्यं गुणानामनन्तत्वं ज्ञेयम्॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy