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________________ जीवविचार भाषाटीकासहित. ******* ****** भावार्थ-आकाशमें उड़नेवाले तिर्यञ्च, खेचर कहलाते हैं, उनके दो भेद हैं;-रोमजपक्षी, और चर्मजपक्षी. रोमसे जिनके पङ्ख बने हैं वे रोमजपक्षी, जैसे-तोता, हंस, सारस आदि. चामसे जिनके पङ्ख बने हैं वे चर्मजपक्षी, जैसे-चमगादड़ आदि. जहाँ मनुष्यका निवास नहीं है, उस भूमिमें दो तरहके पक्षी होते हैं:-समुद्गपक्षी और विततपक्षी. सिकुड़े हुए, जिनके डब्बेके समान पङ्ख हों, वे समुद्गपक्षी. जिनके पङ्ख फैले हुए हों, वे विततपक्षी कहलाते हैं. सवे जल-थल-खयरा, संमुच्छिमा गब्भया दुहा हुंति। कम्माकम्मगभूमि, अंतरदीवा मणुस्सा य ॥२३॥ (सबे) सब (जलथलखयरा) जलचर, स्थलचर, और खेचर (संमुच्छिमा) सम्मूछिम, (गब्भया) गर्भज (दुहा) द्विधा-दो प्रकारके (हुंति) होते हैं. (मणुस्सा) मनुष्य (कम्माकम्मग भूमि) कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज (य) और (अंतरदीवा) अन्तद्वीपवासी हैं ॥ २३ ॥ | भावार्थ-पहले तिर्यञ्चके तीन भेद कहे हैं;-जलचर, स्थलचर, और खेचर. ये तीनों दो दो प्रकारके हैं; संमूछिम, और गर्भज. जो जीव, मा-बापके विना ही पैदा होते हैं, वे संमूच्छिम कहलाते हैं. जो जीव, गर्भसे पैदा होते हैं वे गर्भज. मनुष्यके तीन भेद हैं, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, और अन्तीपनिवासी. खेती, व्यापार आदि कर्म-प्रधान भूमिको कर्मभूमि कहते हैं । उसमें पेदा होनेवाले मनुष्य, कर्मभूमिज कहलाते हैं; कर्मभूमियाँ पन्दरह हैं; पाँच भरत पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह. जहाँ खेती, व्यापार आदि कर्म नहीं होता उस भूमिको अकर्मभूमि कहते हैं, वहाँ |पेदा होनेवाले मनुष्य अकर्मभूमिज कहलाते हैं; अकर्मभूमियोंकी संख्या तीस है। वह इस प्रकारः-ढाई द्वीपमें पाँच AAAAAAAA. *
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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