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________________ तानो उत्पाद अने चलनसहकारीपणे ध्रुव छे. एमज अधर्मास्तिकायादिकने विषे पण सर्वगुणनी प्रवृत्ति थाय छे. ए रीते द्रव्यनेविषे अनंता गुणनी प्रवृत्ति छे. इहां कोइ पुछशे जे धर्मास्तिकायमध्ये अनंताजीव तथा अनंतापरमाणु ते चलणसहकारी थाय एटलो चलनसहकारी छे, तो थोडाजीव अने थोडापरमाणुनें चलणसहकार करतां बीजो गुण कयो! अणप्रवो रह्यो ? एम कहे तेने उत्तर के निरावरण जे द्रव्य छे तेनो गुण अप्रवो रहेज नही अने जीव पुद्गल जे आवी पहोता तेने सहकारें सर्व चलनसहकारी गुणना पर्याय ते प्रवर्तेज छे. केमके अलोकाकाशमध्ये जो अवगा, हक जीव पुद्गल नथी तोपण अवगाहक दान गुणतो प्रवर्तेज छे. तेम धर्मास्तिकायादिकमां जीव पुद्गल थोडाने पोचवे-13 पण गुणतो बधो प्रवर्तेज छे, एम धारवो. ए रीतें गुण पर्यायनो उत्पाद व्यय ध्रुवरूप धर्म कहेवो. ए चोथु रूप कडं. तथा सर्वे पदार्थाः अस्तिनास्तित्वेन परिणामिनः तत्रास्तिभावानां स्वधर्माणां परिणामिकत्वेन उत्पादव्ययौ स्तः नास्तिभावानां परद्रव्यादीनां परावृत्तौ नास्तिभावानां परावृत्तित्वेनाप्युत्पादव्ययौ ध्रुवत्वं च अस्तिनास्तिद्वयौ इति पञ्चमः ॥ अर्थ-तथा सर्व द्रव्यमां अस्ति तथा नास्ति ए बे स्वभाव परिणमि रह्या छे. तिहां जे अस्तिस्वभाव छे ते स्वद्रव्यादिकनो छे. ते जेवारें ज्ञानगुण घट जाणतो हतो तेवारें घटज्ञाननी अस्तिता हती अने तेज घटध्वंस थये कपाल ज्ञान थयुं ते वारें घटज्ञाननी अस्तितानो व्यय थयो अने कपालज्ञाननी अस्तितानो उत्पाद थयो, ए रीतें अस्तितानो
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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