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________________ जीवविचार ॥ ६ ॥ ( माइवाहाई ) मातृवाहिका - जिसकी गुजरातमें अधिकता है और वहाँके लोग चूडेल कहते हैं; इत्यादि ( वेइंदिय ) द्वीन्द्रिय जीव हैं. ॥ १५ ॥ भावार्थ - जिन जीवोंके त्वचा और जीभ हो, दूसरी इन्द्रियाँ न हों, वे जीव द्वीन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे शंख, कौड़ी, पेटके जीव, जोंक, अक्ष, भूनाग, लालीयक, काष्ठकीट, कृमि, पूतरक और मातृवाहिका आदि. गोमी - मंकण - जूआ, पिपीलि- उद्देहिया य मक्कोडा । इल्लिय - घयमिलीओ, सावय- गोकीड जाईओ ॥ १६ ॥ गद्दहय-चोरकीडा, गोमयकीडा य धन्नकीडा य । कुंथु-गुवालिय-इलिया, तेइंदिय इंदगोवाई ॥ १७ ॥ ( गोमी ) गुल्मि - कानखजूरा, ( मंकण ) मत्कुण - खटमल (जुआ) यूका - जूँ, ( पिपीलि) पिपीलिका - चींटी, काली कीडी ( उद्देहियाय ) उपदेहिका - दीमक, और ( मक्कोडा ) मत्कोटक-मकोड़ा, ( इल्लिय ) इल्लिका - ईली, जो अनाज में पैदा होती है, ( घयमिलीओ ) घृतेलिका- जो घीमें पैदा होती है, लालकीडी ( सावय) चर्म - यूका - जो शरीर में पैदा होती है, जिससे भविष्य में अनिष्टकी शङ्का की जाती है, ( गोकीड जाईओ) गोकीटकी जातियाँ अर्थात् पशुओंके कान आदि अवयवोंमें पैदा होनेवाले जीव ॥ १६ ॥ ( गद्दहय ) गर्दभक - गोशाला आदिमें पैदा होनेवाले सफेद रँगके जीव, ( चोरकीडा ) चोरकीट - विष्ठाके कीड़े, (गोमय कीडा ) गोमयकीट - गोवर के कीड़े, ( धन्नकीडाय ) धान्यकीट - अनाजके कीडे, और ( कुंथु ) कुन्थु - एक किस्मका कीड़ा, ( गुवालिय ) गोपालिका - एक किस्मका अप्रसिद्ध जीव, ( इलिया ) ईलिका - भाषाटीकासहित. ॥ ६॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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