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________________ नयचक्रसार मूळ | बालावबोधसहित ॥९४॥ SRIGAROO अर्थ-द्रव्यना गुणना तथा पर्यायना लक्षण जे ओलखाण ते निक्षेपें करी तथा नयें करी युक्त तत्त्वना भेदें सहित कहुं छु तत्र के० तिहां जिनागमने विषे तत्त्व जे वस्तुस्वरूप, भेद तेना जूदा जूदा भेदपर्याय तेमा रह्या जे धर्म एटला प्रकारे व्याख्या के० अर्थनूं कहेवू तेणे करीने यथार्थ व्याख्यान थाय तिहां तत्त्वनुं लक्षण कहे छे. व्याख्यान करवा योग्य जे जीवादिक वस्तु तेनो मूलधर्म ते वस्तुनुं स्वरूप तत्त्व कहियें जेम कंचननुं स्वरूप पीत गुरु स्निग्धतादि तथा६ एजें कार्य आभरणादिक अने एहनु फल ते एहथी अनेक भोग्यवस्तु आवे एम जीवनुं स्वरूप ज्ञान दर्शन चारित्रादि अनंतगुण तथा जीवनुं कार्य सर्वभावनुं जाणवू प्रमुख ए रीतें अभेदपणे रह्या जे धर्म ते सर्व वस्तुनुं तत्त्व कहिये. येन सर्वत्राविरोधेन यथार्थतया व्याप्यव्यापकभावेन लक्ष्यते वस्तुखरूपं तल्लक्षणं तत्र द्रव्यभेदा यथा जीवा अनंताः कार्यभेदेन भावभेदा भवन्ति क्षेत्रकाल भावभेदानामेकसमुदायित्वं द्रव्यत्वम् अर्थ-हवे लक्षण कहे छे. जे गुणे करी सर्वद्रव्य स्वजातिमां अविरोधिपणे यथार्थपणे १ अतिव्याप्ति २ अव्याप्ति असंभवादि दोषरहित वस्तु जे व्याप्य तेहने विषे व्यापकपणे लखियें जाणियें तेने वस्तुनुं लक्षण कहिये. ते लक्षण बे प्रकारर्नु छे एक लिंग बाह्यआकाररूप अने बीजुं वस्तुमा रह्यो जे स्वरूप ते. ए बे भेद छे तेमां लिंगथी तो गायनुं लक्षण जे सास्नासहितपणो ते बाह्यआकाररूप लक्षण छे ए बाह्य लक्षणे जे ओलखाण करे ते बालचाल छे अने जे वस्तुने धमै ओलखाय ते स्वरूपलक्षण कहिये, जेम चेतनालक्षण ते जीव, तथा चेतनारहित ते अजीव इत्यादिक लक्षणे ॥१४॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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