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________________ रांगादिकसूत्र भणे नही ते निशीथमां कह्यो छे जे भिक्खु अन्नउत्थीयं वा गारत्थियंवा वायणं वाएई वाइजंतं साइज्जति तस्सचोमासीयं परिहार ठाणं जे गृहस्थांने सूत्र बंचावे अथवा वांचताने अनुमोदे तेहने चार मासनो पाल्यो चरित्र जावे तथा प्रश्नव्याकरणसूत्रे अह केरीसीयं पुण सबन्नुभासिय जत्थदब्बेहिं गुणेहिं पज्जवेहिं कम्मेहिं बहुविहेहिं आगमेहिं नामाक्खायनिवाय उवसग्गतद्धिअसमास संधिपद जोगउणादि कीरीयावीहीणसरधाउसरविभत्ति वन्नजुतं भासियचं तथा अनुयोगद्वारे ७ नय, ४ निक्षेपा, ३ काल तीन लिंगातीन, जाण्याविना उपदेश देवो ते मारग नथी इत्यादिक अनेक बोलछे ते गीतार्थनी सेवनाथी पामीये इतिभद्रं जेकेई श्रीजिनप्रतिमानी पूजामध्ये फूल पूजानी शंका करे तेहने कहीये जे श्रीरायपसेणीसूत्रे १७ भेदी पूजानो पाठछे पुप्फारूहणं १ मालारूहणं २ तह वन्नारूहणं ३ तथा पुप्फगिह ४ पुप्फपगरं ५ एतली पूजा फूलनी छे तेमाटे पूजा फूलनी ते प्रमाण छे, तथा श्रीभगवतीसूत्रे पण सूरीआभनी पेरे पूजानी भलामणना पाठ अनेक छे तथा ज्ञातासूत्रे द्रौपदीने अधिकारे |१७ प्रकारी पूजानो पाठ छे समवायांगसूत्रे चौतीस अतिशयने अधिकारे जलयथलय भासुरदसद्धवन्नेणं जाणु|स्सेहप्पमाणमित्तेणं पुष्फपुंजोवयारं करेई इत्यादि पाठ छे इहां समवायांगसूत्र में देवता मनुष्यनो नाम कह्यो नथी तथा श्रीउववाईसूत्रे कोणिकने अधिकारे श्रीवीर समोसर्या तेवारे अनेकजन चंपाथी निकल्या जे अप्पेगइया वंदण वत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइयाअसुयं सुयस्सामो अप्पेगइयाविउलाईअट्ठाओ हेओआइ य पसिणाई गहिस्सामो, इत्यादि पाठ छे तिहां पूयणवत्तीयाए ए पाठनो अर्थटीका मध्ये पूजनं पुष्पमालादिना इम कह्यो छे इहा श्री तीर्थकरने
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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