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जीवविचार
CARRIERIAGARICA
| भावार्थ-जिन वनस्पतियोंके एक शरीरमें एक जीव हो अर्थात् एक शरीरका एक ही जीव, स्वामी हो, उन वन
भाषाटीस्पतियोंको प्रत्येक-वनस्पतिकाय समझना चाहिये प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवके सात भेद हैं;-फल, पुष्प, छाल, काष्ठ, कासहित. मूलियाँ, पत्ते और बीज. पत्तेयं तरु मोत्तुं, पंचवि पुढवाइणो सयललोए ।सुहुमा हवंति नियमा, अंतमुहुत्ताउ अदिस्सा ॥१४॥
(पत्तेयं तरु) प्रत्येक-वनस्पतिकायको (मोत्तुं) छोड़कर, (पंचवि) पाँचों ही (पुढवाइणो) पृथ्वीकाय आदि, दा(सुहुमा) सूक्ष्म-स्थावर (सयल लोए) सम्पूर्ण लोकमें (हवंति ) विद्यमान हैं-रहते हैं और वे (नियमा) नियमसे (अंतमुहुत्ताउ) अन्तर्मुहूर्त आयुष्यवाले होते हैं, तथा (अद्दिस्सा) अदृश्य हैं-आँखसे देखनेमें नहीं आते ॥ १४॥ |
भावार्थ-प्रत्येक-वनस्पतिकायको छोड़कर पृथ्वीकाय आदि पाँचों ही सूक्ष्म-स्थावर सम्पूर्ण लोकमें भरे पड़े हैं. उनकी आयु अन्तर्मुहूर्तकी होती है तथा वे इतने छोटे हैं कि आँख उन्हें नहीं देख सकती.
प्र०-अन्तर्मुहूर्त किसे कहते हैं ? उ.-नव समयसे लेकर, एक समय कम, दो घड़ी जितना काल अन्तर्मुहूर्त कहलाता हैं. नव समयोंका अन्तर्मुहूर्त सबसे छोटा अर्थात् जघन्य है; और, दो घड़ीमें एक समय कम हो, तोडू वह अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट है; बीचके कालमें, नव समयसे आगे, एक एक समय बढ़ाते जाँय तो, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक, असंख्य अन्तर्मुहूर्त होते हैं.
॥५॥ प्र०-समय किसे कहते हैं ? उ०-उस सूक्ष्म कालको, जिसका कि सर्वज्ञकी दृष्टिमें भी विभाग न हो सके.
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