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________________ आगमसार ॥७८॥ आमम ते १ मूल सूत्र तथा २ नियुक्ति ३ भाष्य ४ चूर्णि ५ टीका ए पंचांगीना वचन जे जीव माने तथा आगम प्रकरणम् सांभलवानी तथा भणवानी जेने घणी चाहना होय ते सूत्ररूचि जाणवी. ५ जे जीव गुरुमुखथी एक पदनो अर्थ सांभलीने अनेक पद सद्दहे ते बीजरुचि. | ६ अभिगमरुचि ते जे सूत्र सिद्धान्त अर्थ सहित जाणे अने अर्थ विचार सांभलवानी घणी चाहना होय ते अभि गमरुचि. | ७ जे छ द्रव्यना गुण पर्यायने चार प्रमाण तथा सात नये करी जाणे ते विस्ताररुचि. ८क्रियारुचिते दर्शन ज्ञान चारित्र तप विनय सुमति गुप्ति बाह्य क्रिया सहित आत्मधर्म साथे जेने रुचि घणी होय ते क्रियारुचि. | ९ संक्षेपरुचि ते जे अर्थने ज्ञानमां थोडो कहे थके घणो जाणीने कुमतिमां पडे नही जिन मतमां प्रतीति माने ते संक्षेपरुचि. १. जे पांच अस्तिकायनुं स्वरूप जाणे श्रुतज्ञाननो स्वभाव अंतरंग सत्ता सद्दहे ते धर्मरुचि. ___ हवे समकितना आठ गुण कहे छे. १ निसंका ते जिनागम मध्ये सूक्ष्म अर्थ कह्या ते सांचा सद्दहे तेमां संदेह आणे|| नही. तथा सात भयथी पण डरे नही २ निकखा गुण ते पुण्यरूप फलनी चाहना न राखे केमके जिहां इच्छा तिहां दी ॥ ७८ ॥ कर्मनो बंध छे माटे ३ निवित्तिगिच्छागुण ते शुभ अशुभ पुद्गल एकसरिखा छे तेमां पुण्यना उदयथी शुभयोग मिल्या EKARSASARAIGARCARSAREERIES
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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