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________________ आगम सार ॥ ६८ ॥ प्रदेशे अनंतिकर्मवर्गणा लागी छे ते एकेक वर्गणा मध्ये अनंता पुद्गल परमाणु छे एम अनंता परमाणु जीवसाथे लाग्या छे ते थकी अनंत गुणा पुद्गल परमाणुं जीवथी रहित छुटा छे. गोलाय असंखिज्जा, असंखनिगोयओ हवइ गोलो । इक्किकम्मि निगोए, अनंतजीवा मुणेयवा ॥ १ ॥ अर्थ - लोकमांहे असंख्याता गोला छे एकेका गोला मध्ये असंख्याति निगोद छे एकेक निगोदमां अनंता जीव छे. सत्तरससमहिआ, किर इगाणुपाणुम्मिहुंति खुड्डभवा । सगतिससयतिहुत्तर, पाणुं पुण इगमुहत्तंमि ॥१॥ अर्थ - निगोदिया जीव ते मनुष्यना एक उसासमां सत्तर १७ भव झाजेरा करे छे अने सडत्रीससो तिहूंतेर ३७७३ श्वासोच्छ्वास एक मुहूर्त्तमां थाय. पणसट्टिसहस्स पणसय, छत्तिसा इगमुहुत्त खुड्डुभवा । आवलियाणं दो सय, छपन्ना एगखुड्डुभवे ॥ १ ॥ अर्थ - निगोदना जीव एक मुहूर्त्तमां ६५५३६ भव करे अने निगोदनो एक भव २५६ आवलीनो छे क्षुल्लक भवनो ए प्रमाण छे. अस्थि अनंताजीवा, जेहिं न पत्तो तसाइपरिणामो । उवज्जंति चयंति य, पुणोवि तत्थेव तत्थेव ॥ १ ॥ अर्थ - निगोदर्मा अनंता जीव एहवा छे जे जीव त्रस पणो पहेला किवारें पाम्यां नथी अनंतो काल पूर्वे गयो अने अनंतो काल जाशे पण ते जीव वारंवार तिहांज उपजे छे अने तिहांज चवेछे एम एक निगोदमां अनंता जीव छे ते प्रकरणम् ॥ ६८ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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