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________________ आगमसार प्रकरणम् ॥६४॥ MANASALAGICADA तेटलाज बिछानामा रहुं छु अने ऋजुसूत्र नयवाले कर्वा जे मारा आत्माना असंख्याता प्रदेशमा रहुं छु बली शब्द नय ४ कहे जे मारा स्वभावमा रहुं छु तेमज समभिरूढ नय कहे जे हुं मारा गुणमा रहुं छु अने एवंभूतनयवादी कहे जे |ज्ञान दर्शनगुणमां वसुं छु ए दृष्टांत कह्यो तेम सर्व वस्तुमां कहे,, ___ तथा कोइके प्रदेशमात्र खेत्र अंगीकार करी पुछ्यु जे ए प्रदेश कया द्रव्यनो छे तेवारें नैगमनय बोल्यो जे छए द्रव्यनो प्रदेश छे केमके एक आकाश प्रदेशमध्ये छ द्रव्य भेला छे तेवारें संग्रहनय बोल्यो जे काल द्रव्य तो अप्रदेशी छे ते माटे सर्व लोकमां एक समय सरिखो छे पण ते एक आकाश द्रव्यना प्रदेशमां जूदो नथी माटे काल विना पांच द्रव्यनो प्रदेश छे तेवारें व्यवहार नय बोल्यो के जे द्रव्य मुख्य देखाय छे तेहनो प्रदेश छे तेवारें ऋजूसूत्रनय बोल्यो के जे द्रव्यनो उपयोग देइ पुछिये ते द्रव्यनो प्रदेश छे जो धर्मास्तिकायनो उपयोग देइ पुछिये तो धर्मास्तिकायनो प्रदेश छे जो अधर्मास्तिकायनो उपयोग देइ पुछियें तो अधर्मास्तिकायनो प्रदेश छे तेवारे शब्दनय बोल्यो के जे द्रव्यनो नाम लइ पुछिये ते द्रव्यनो प्रदेश छे हवे समभिरूढ नय बोल्यो जे एक आकाश प्रदेश मध्ये धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश छे अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश छे अने जीवना अनंता प्रदेश छे पुद्गलना पण अनंता प्रदेश छे तेवारें एवं भूतनय बोल्यो के प्रदेशने जे द्रव्यनी क्रिया गुण पर्याय अंगीकार करी देखिये ते समय ते प्रदेश ते द्रव्यनो गणियें ए प्रदेशमा सात नय कह्या. __हवे जीवमा सात नय कहे छे प्रथम नैगमनयनी मते जे गुण पर्यायवंत शरीर सहित ते जीव एटले शरीरमा जे RALAMAKARMANCHESTOCAC ॥६४॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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