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________________ ** **CH तब तक उसमें जीव रहता है, खानसे निकालनेपर गलानेसे जीव नष्ट हो जाता है. इस तरह पत्थरोंको खानसे निकालने तथा मिट्टियोंको पैरोंसे चलने आदिसे भी जीव नष्ट होते हैं । भोमंतरिक्ख-मुदगं, ओसाहिम-करग-हरितणू-महिआ। हुंति घणोदहिमाई, भेआ णेगा य आउस्स॥५॥ है (भोमं) भूमिका-कूँआ, तालाव आदिका जल, (अंतरिक्खमुदगं) अन्तरिक्षका-आकाशका जल (ओसा) ओस, (हिम ) बर्फ, (करग) ओले, (हरितणू) हरित वनस्पतिके-खेतमें बोये हुए गेहूँ, जव आदिके-बालोंपर जो पानीके | बूंद होते हैं, वे, (महिया) महिमा-छोटे छोटे जलके कण जो बादलोंसे गिरते हैं, (घणोदहिमाई ) घनोदधि आदि,8 द(आउस्स) अप्काय जीवके, (भेआ णेगा) अनेक भेद, (हुति) होते हैं ॥ ५॥ X भावार्थ-कूँआ, तालाव आदिका पानी, वर्षाका पानी, ओसका पानी, बर्फका पानी, ओलोंका पानी, खेतकी 8. वनस्पतिके ऊपरके जलीय कण, आकाशमें बादलोंके घिरनेपर कभी कभी सूक्ष्म जल-तुषार गिरते हैं, वे, तथा घनो-8 दादधि ये सब, तथा और भी अप्काय जीवके भेद हैं. प्र०-घनोदधि किसे कहते हैं? उ०-स्वर्ग और नरक-पृथ्वीके आधार-भूत जलीयपिण्डको. इंगाल-जाल-मुम्मुर, उक्कासणि-कणग-विज्जुमाईआ।अगणिजिआणं भेआ, नायव्वा निउणबुद्धीए॥६॥ (इंगाल) अंगार-ज्वालारहित काष्ठकी अग्नि, (जाल) ज्वाला (मुम्मुर ) कण्डेकी अथवा भरसाँयकी गरम राखमें SUSIREGAR*** GA CHOG See
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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