SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सार ॥ ६० ॥ विषयाभिलाष सहित छे तो ते जीव अव्रतीज छे एम ऋजुसूत्रनुं मानवु छे ते ऋजुसूत्रना वे भेद छे एक सूक्ष्म ऋजु सूत्र ते एम कहे जे सदा काल सर्व वस्तुमां एक वर्त्तमानसमय वर्त्ते छे एटले जे जीव गयाकालें अज्ञानी हतो अने अनागत कालें अज्ञानी भावें अज्ञानी थशे एम बेहुकालनी अपेक्षा न करे पण एक वर्त्तमान समये जे जेवो तेने तेवो कहे ते सूक्ष्म ऋजु सूत्र कहियें अने महोटा बाह्यपरिणामग्रहे ते स्थूल ऋजुसूत्र नय जाणवो एटले ऋजुसूत्र नय कह्यो. हवे शब्दनय कहे छे जे वस्तु गुणवंत अथवा निर्गुण ते वस्तुने नामकही बोलावियें जे भाषावर्गणाथी शब्द पणें वचन गोचर थाय ते शब्द नय जे कारणे अरूपी द्रव्य वचनथी ग्रह्याजाय नही पण वचनथी कहेवा ते शब्द नय कहियें इहां जे शब्दनो अर्थ होय तेपणो जे वस्तुमां वस्तुपणे पामियें तेवारें ते वस्तु शब्दनय कहियें जेम घटनी चेष्टाने | करतो होय ते घट ए शब्दनयमां व्याकरणथी नीपना अने बीजा पण सर्व शब्द लीधा ते शब्दनयना चार भेद छे १ नाम २ स्थापना ३ द्रव्य ४ भाव -अने चार निक्षेपाना पण एहिज नाम छे. १ पहेलो नाम निक्षेपो ते आकार तथा गुणरहित वस्तुने नाम करी बोलाववो जेम एक लाकडीनो कटको लेइने कोइके तेहने जीव एवं नाम कह्यं ते नाम जीव जाणवुं जेम काली दोरीने सांपनी बुद्धियें करी घावहणे तेहने सांपनी हिंसा लागे ए नाम सर्प थयुं एवीज रीते नाम तप अथवा नाम सिद्ध जेम वड प्रमुखने सिद्धवड एम कही बोलावे छे ते नाम निक्षेपो कहियें ए सूत्र साखे छे. २ स्थापना निक्षेपो कहे छे जे कोइक वस्तुमां कोइक वस्तुनो आकार देखीने तेहने ते वस्तु कहे जेम चित्राम अथवा प्रकरणम् ॥ ६० ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy