SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जंबूद्वीप संघयणी प्रकरणम् ॥ ४७ ॥ पद्म १ महापद्म २ तिगिच्छि ३ केसरी ४ पुण्डरीक ५ और महापुण्डरीक ६ इन छके साथ देवकुरु ओर उत्तरकुरु इन क्षेत्रांके पांच २ द्रह मिलानेसै शोले महान्द्रह जंबुद्वीपमें जानना ॥ २० ॥ गंगा सिंधुरत्ता, रत्तवई चउनईओ पत्तेयं । चउदसहिं सहस्सेहिं, समग्ग वच्चंति जलहिम्मि ॥ २१ ॥ अर्थ — जंबुद्वीपके दक्षिण भरत क्षेत्रमें एक (गंगा) गंगा दुजी (सिंधु) सिन्धु यह दो बडी नदीये है, इसी तरह उत्तरकी तर्फ ऐरवत क्षेत्रमें एक ( रत्ता ) रक्ता दुजी ( रत्तवई ) रक्तवत्ती यह दो बडी नदीये है, इन ( पत्तेयं ) प्रत्येक २ ( चउ ) च्यार ( नइओ) नदियोंके ( चउदसहिं सहस्सेहिं ) चउदा चउदा हजार नदियांका परिवार है, और इनकी ( समग्ग) समग्र याने सर्व संख्या, छप्पन्न हजार नदियें होती है. और ( जलहिम्मि ) समुद्रके अंदर जाके ( वच्चंति ) मिलती है ॥ २१ ॥ भावार्थ - जंबुद्वीपके भरत क्षेत्र आस्री एक गंगा, दुजी सिन्धु, और ऐरवत क्षेत्र आस्त्री. एक रक्ता, दुजी रक्तवती, | यह च्यारां नदिये अपने २ चउदह २ हजार नदियांके परिवारसें समुद्र में जाके मिलती है ॥ २१ ॥ एवं अभितरिया, चउरो पुण अट्ठवीस सहस्सेहिं । पुणरवि छप्पन्नेहिं, सहस्सेहिंजंति चउसलिला ॥२२॥ अर्थ - ( पुण) फिर ( एवं ) ऐसेहि एक हेमवत. दुजा ऐरण्यवत. इन दो युगलियांके ( अभितरिया ) अभ्यंतर - क्षेत्रकी नदिये. एक रोहिता. दुजी रोहितांशा तीजी रूपकूला. और चोथी सुवर्णकूला, यह ( चउरो ) च्यारों नदिये अर्थ सहितम् ॥ ४७ ॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy