SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ सहितम् जंबूद्वीप संघयणीप्रकरणम् ॥४६॥ SUSTASSASSISCHICH है, फिर शान्मलि वृक्षके मध्यका (हरिकूड) हरिकूट, और (हरिस्सस) हरिसह ये दो कूट इन कूटांके साथ मिला-1 णेसे (सही) साठ भूमि कूट होते है ॥ पंचम कूट द्वार मिति ॥ १७॥ भावार्थ-चोतीश विजयके चोतीश ऋषभ कूट और एक मेरु पर्वत, दुसरा जंबुवृक्ष तीसरा देवकुरु इन तीनांके आठ २ भुमिकूट, फिर शाल्मलिवृक्षके वीच हरि कूट और हरिसह यह दो कूट, एवं भुमि कूटांकि संख्या साठ (६०)| होती है ॥ १७॥ मागह वरदाम पभासं, तित्थविजएसु एरवय भरहे। चउतीसा तिहिंगुणिया, दुरुत्तरसयं तु तित्थाणं १८ __ अर्थ-(विजएसु) बत्तीस विजय, व (एरवय) ऐरवत, और (भरहे) भरतक्षेत्र, इन प्रत्येक चोत्तीश स्थानोके अन्दर, एक (मागह) मागध, दुसरा (वरदाम) वरदाम, तीसरा (पभासं) प्रभास, ये तीनो (तित्थ) तीर्थ है, अतः (चउतीसा) चउतीशको (तिहिं ) तीनसें (गुणिया) गुणा करें तो (तु) फिर (दुरुत्तरसयं तित्याणं) एकसो दो (१०२)| तीर्थ होते है ॥१८॥ | भावार्थ-बत्तीशविजय और एक ऐरवत, एक भरत इन चोतीश क्षेत्रांमें एक मागध. दुसरा वरदाम तीसरा प्रभास 8| यह तीन २ तीर्थ हरएक क्षेत्रमें होते है. अस्तु. एकसो दो (१०२) सबी तीर्थोकी संख्या जानना ॥१८॥ विजाहर अभिओगिय, सेढीओ दुन्निदुन्नि वेयड्ढे। इय चउगुण चउतीसा, छत्तीस सयं तुसेढीणं ॥१९॥ SCAUCARICHIGAICIALIAICHICH ॥४६॥
SR No.600385
Book TitleJivvicharadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttasuri Gyanbhandar
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy