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धर्मविधि
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प्रकरणम्
॥१४६॥
इंतं दई, कयंजली उहिउ समुहो ॥ ४६ ॥ जंपइ य सायगं तुह किम वत्था मित्ततू एरिसी अज्ज । किं कजं कह तुमए करेमि जेणाहमचिरेण ४७ तो तस्स सोमदत्तो तं वुत्तं तं कहित्तु जंपेइ मुंचिस्से निवसीम साहिज्जे कुणसु महमित्त॥४८॥सो भणइ मित्ताह, महुरालावेहिं तुज्झ अधमण्णो। काऊग य साहिजं अहुणा अरिणो भविस्सामि।।४९॥मासबहावि भाय सुं, मित्त तुम एस पुट्ठर क्खो होमइजीवंते कोविहु न, खमोरोमं पितुह गहिउँ।।५०॥अह आरोविय चावो पिढे ढबद्ध भत्थओ अभओ। पुरओ पुरोहियं तं पणाममित्तोकुणइ सहसा॥५१॥तत्तो पुरोहिओ सो, पत्तो सह तेण चिंतियं ठाणं । अणुभवइ य निम्सको, तत्थ जहिच्छं विसयसुक्खं ॥२५२॥इत्थ य भावत्थो यं, एस जिओ सोमदत्तसंकासो । सहमित्तमित्ततुल्लो, एसो देहो य देहीणं ॥५३॥जमिमो देहो दुकम्म-निवइ विहियम्मि मरणवसणम्मि । जीवेण पोसिओ वि हु, नागच्छइ सह मणागं पि।।५४॥सव्वे वि सयणवग्गा, सारिच्छा पव्वमित्तमित्तस्स । ते वि हु मसाणचच्चर-मणुगच्छित्ता नियटृति । ५५॥ धम्मो पणाममित्तस्स, सन्निभो सयलमुक्खसंजणगो । जो जीवे गच्छन्ते, सहेव गच्छइ परत्तावि ॥५६॥ ता इहलोइय सुक्खा-कंखामुढे? मणस्सिणि? पिए? है । परलोयसुई धम्म, नोविक्खिस्से मणागं पि ॥ ५७ ॥ अह जयसिरी पयंपइ, अट्ठमभजा तुमं पि हे नाह। कूडकहाणेहि परं, ना. गसिरी इच विमोहेसि ॥५८ ॥ रमणीयाभिहनयरे, कहापिओ नरवई पइदिणं सो । निद्दिसिय वारएहि, कह कहावइ पुरजणाओ ॥ ५९॥ तम्मि पुरे आसि तया, एगो दारिद्दजम्मभूविप्पो । भमिऊण दिणं सयलं, सो कणभिक्खाइ जीवेइ ॥ ॥ १२६० ॥ अह अन्नदिणे तस्स वि, विप्पस्स निरक्खरस्स संजाओ । निवइस्स कहाकहणं-मि वारओ तो स चिंतेइ ॥६१ नियनामरस वि कहणे, मह जीहा सन्निवायभरिय व्व । खलइ सया ता तीसे, का नाम कहा कहाकहणे ॥ ६२ ॥ जइ क
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