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________________ 75 प्रकरणम् % धर्मविधिहणइ दासि व ॥ ८९९ ॥ सा भणइ मा पकुप्पम, अंतेऊरजामिओ नवो अन्ज । जाओ भइजागरुभो, सो न मुबइ तेण रुडा ॥१३५॥ ॥ ९०० .. निहाछिदं कहमपि, लहिउँ से आगया चिरैणाहं । इय नीइ बोहियो सो, मिंटो त रमइ निस्संकं ॥ ९०१॥ B अह निसिपछिमभाए, मिठं रमिऊण साहसनिही सा । करिणा करमारोषिय, उक्खित्ता एइ नियठाणं ॥ ९०२ ॥ तं पि क्खिऊण चिंतइ, सुवनयारो अहो जुबइचरियं । बुद्धि विहिपरिणामं, आसकुहक्कं च को मुणइ ।। ९०३ ॥ विविडपयारेहि अहो, सुरक्खियाण पि रायजुबईणं । इय होइ सीलभंगो, का बत्ता अन्ननारीणं ॥९०४ ॥ पाणीयाणयणाइसु, सया विनयरंमि संचरंनीणं । इयरगिहत्थपियाग, सीलताणं हवइ कत्तो ॥ ९०५॥ इय सुण्हाइ दुसील-तणचितं चइय मुन्नयारो सो। | दिबरिणो अधमन्नो, इच मुत्तो निन्भरं तत्थ ॥९०६ ॥ सो जार वि पभाए, सुवनयारो न जग्गए कह वि । तं तह मुर्त च तहि, चेडीभो कहति नरवइणो ॥ ९०७॥ निवई वि भणइ एवं, होयचं कारणेण केणावि । पडिबुज्नइ सो जइया, सइया मह पासमाणेओ ॥ ९०८ ॥ इय भणियाउ गयाओ, चेडीओ सो सुवनयारो वि । निद्दामुहं चिराओ, अणुभवई सत्त दिवसाई॥९०९ ॥ सत्तमदिणावसाणे, सयमेव समुडिओ स चेडीहिं । नीओ निवस्स पुरओ, निवो वितं पुच्छए एवं ॥९१०. निहा तुह न कया वि हु, आयंती कापिणि व दुभगरस । ता सत्तदिणे सुत्तो, को हेऊ कहसु ते अभयं ॥ ९११ ॥ सोते निसिवुत्तंते, नरिंदभजाइ तह करिंदस्स । मिट्ठस्स वि जह दिटुं, साहइ सन् पि नियपुरओ ॥ ९१२ ॥ रमा पसाइऊणं, विसन्जिभो सो गो नियगिहम्मि । जाओ य जिण्णदुक्खो, जेण जणो धीरइ जणस्स ॥ ९१३ ॥ रमा वि नियपियाए, तीए दुच्चारिणोइ मुणणथं । कारिय किलंजहत्यि, भणियाओ सब्वभज्जाओ ॥ ९१४॥ जं अज्ज मए सुमिणो, दिट्ठो निसि २R ॥१३५॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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