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धर्मविधि ॥१३४॥
सिउनाह ? । किं पुण सुरयट्ठाणे, पइमालिंगियपसुत्ताए । ८६८ || तो भणइ देवदिनो, पिए! पभायम्मि पियरमहमेयं । तुझ निरिक्खतीए, सोवालंभं भणिस्सामि || ८६९ ॥ सा भणइ संपर्यं चिय, पिय ! जंपसु तायमुट्ठिऊण तुमं । अन्नह परसासह, सुतं कल्ले मर्म कहिही ॥ ८७० ॥ सो जंपइ सुवसु पिए ?, मह पिक्वैतस्स नेउरं गहियं । इय तायमक्खिविस्से, इत्थत्थे तुज्झ बीओ हं ॥। ८७१ ॥ अह जायंमि पभाए, स देवदिनो पर्यंपए पियरं । कह ताय ? तए बहुया चरणाओ नेउरं गहियं ॥ ८७२ ॥ थविशे पभणइ एसा, दुस्सीला वच्छ ? तुह वहू नूणं । परपुंसा सह दिट्ठा, असोगणियाइ निसित्ता ॥ ८७३ ॥ दुस्सील च्चिय एस, त्ति तुज्झ पञ्चयकए बच्छ ? । बहुयाचरणाउ सयं, नेउरमाकरसियं एयं ॥ ८७४ || भइ सुओ सुलो, तया भन्नोन को वि निल्लज्ज ? । ता नेउरं समप्यसु, मा विग्गुप्पसु जणे थेर ? || ८७५ ।। वुड्ढो जंपेइ जया, ने"उरमाकरिसियं इमाइ मया । तइया गिहे पत्तो, आगंतुं पिक्खिओ सि तुमं ॥। ८७६ || अह दुग्गलाइ भणियं, पिययम ! न सहेमि दूसणं एयं । पत्तिज्जावेपि अहं, काउं दिव्वं पि किरियमहं ॥ ८७७ ॥ कुलजायाइ कलंको, सुसुरखयपि एरिसं मज्झ । सिबिंदु व्व न सोह, सियम्मि पक्खालिए वत्थे || ८७८ ॥ इह सोहणजक्खस्स वि, जंघामज्झेण नीसरिस्से हैं । जंघतरेण तस्स हि, नासुडो इसरो गंतुं ॥ ८७९ ॥ अह सविगप्पो सुसुरो, विगप्परहिओ पिओवि तं तीसे । साहसमहानिहीए, वयण परिवज्जइ तहेव ॥ ८८० ॥ तो न्हाऊण बहू सा, सियवत्था पुप्फधूवच लिहत्था । सयलजणप्पच्चक्खं तं जक्खं पूइ चलिया ।। ८८१ ॥ तीसे जखस्स गिहे, गयाइ संकेइओ उबवई सो । गहिलीहोउँ लग्गो, कंठपएसे कवग्गु व्व ॥ ८८२ ॥ निकासिउं जणेणं, गलए धरिऊण एस गहिल त्ति : न्हाऊण पुणो जक्खं, पूइत्ता सा इमं भणइ । ८८३ || नाइ ! पई मुत्तूणं,
प्रकरणम्
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