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धर्मविधि ॥१३॥
प्रकरणम्
भूओ। तित्थगुणाउ स एव हि, हवेइ जइ निवडइ पुणो वि ॥ ७७३ ॥ इय सो तम्मि वि तित्थे, सुरत्तबुद्धीइ दिन्नपो वि । पुत्वभववानरत्तेण, वानरो हवइ तह चेव ॥ ७७४ । सा नारी पुण पुन्निम-चंदमुही मुद्विगिज्झतणुमज्झा । करिकुंभसमनियंबा, विहसियपउमाभकरचरणा ॥ ७७५ ॥ गंगामट्टियतिलया, वल्लीसंजमियकुंतलकलावा । तालदलकुंडलधरा, वणकेयइ-17 विहियउत्तंसा ॥ ७७६ ।। कयनलिणिनालहारा, मुणालतंतू व रइयभुयवलया। दिट्ठा परिभमिरेहि, तत्थागयरायपुरिसेहिं ॥ ७७७ ॥ अह गिहिऊण ते तं, गंतु अप्पंति निययनरवइणो । जज असामियं इह, तं तं सवं हवइ रन्नो ॥ ७७८ ॥ तेणावि असमरूवा, सा अंतेउरसिरोमणी विहिया । ज लक्खणवंताणं, लच्छीओ हुँति अतिहीओ ॥ ७७९ ॥ सो वानरो वि केहि वि, तत्थागयन डनरेहि गहिऊण । बहुविहभंग नमु, सिक्खविओ तेहि तणउ व ॥ ७८० ॥ अन्नदिणमि नडा ते, पत्ता तस्सेव निवइणो पासे । तं नच्चयंति वानर-मवसरकरणुज्जया तत्थ ।। ७८१ ॥ अद्धासणम्मि रन्नो, आसीणं पिक्खि-४ ऊण तं कतै । रोएइ वानरो सो, नक्कालं जायविरहु व ॥ ७८२ ॥ भणइ पिया जो वानर ?, कालो जह एइ तं तह गमेसु । मा वंजुलाउ पडणं, मुमरंतो रोयसु इयाणि ॥ ७८३ ।। ता नाह ? अम्ह भणियं, अगणतो पत्तविसयमुहविमुहो । सो वानरु व तुममवि, तप्पंतो किंपि न लहेसि ॥ ७८४ ॥ जंपइ जंबूकुमरो, सच्चमिमं हे पउमसिरिकंते । किंतु विसएम तिसिओ, नाहं अंगारकारु व ॥ ७८५ ॥ जह पुव्वं अडवीए, पत्तो अंगारकारओ कोवि । अंगारकरणहेर्ड, गिम्हे गहिओदगो पाउं ॥ ७८६ ॥ एगागी अंगारे, कुव्वंतो वन्हितवियसव्वंगो । तह तवणतावतत्तो, जाओ अञ्चततिसिओ सो ॥ ७८७ ॥ तणुसेगेण वरागो, वारंवारं च वारिपाणेण । सो वणकरिव्य सव्वं, पासठियं निवइ सलिलं ॥ ७८८ ॥ सवेणावि जलेणं, पीएणंगार