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प्रकरणम्
धर्मविधि
बहुँ, मुत्तुं जासुत्ति वारयंतीण । सहियाण उत्तरं सो, देइ अहं एमि नमिय गुरुं ॥ २६५ ॥ अह भवदेवो वंदइ, भवदत्तं जाव॥११५॥
| ताव घयठा(भा)ण । मुणिणा ममप्पियं से,सच्चकारु व्व दिक्खाए॥२६६।।तो भवदत्तो चलिओ,घयठा(भा)णधरेण भाउणा सA:हिं । अणुगच्छंति य बहवे, तं नरनारी उ भत्तीए । २६७ ॥ दूरं गंतु वलिए, सयणजणे चिंतए स भवदेवो । अविसज्जिया
य एए, वलंतु भणिो वलिस्सेहं ॥ २६८ ॥ असणाइभरक्कतेण, भाषणा अप्पियं घयहाणं । ता मुत्तुमिमं ठाणे, जुज्जइ | निठवत्तिय मज्झ ॥ २६९॥ मा वलउ इमो पच्छा, इय मणविक्खेवहेयवे तस्स । आरंभइ भवदत्तो, वत्ताओ गारिहत्थस्स
॥२७० ॥ बंधव ! एए ते गा- मपायवा पहियमंडवपडिमा । जेसु जहिच्छ साहा-मिउ न रमिया तुमे अम्हे ॥ २७१ ॥ एयाई सरवराई, ताइ अम्हेहिं जेसु अन्नुन्न । नलिणीनालेहिं कया, हारसिरी कंठवीडेसु ॥ २७२ ॥ एया उ गामपज्जतभृमिया भूरिवालुआ जत्थ । वालुयचेइयकीला, अम्हेहिं पाउसे विहिया ॥ २७३ ॥ भवदत्तो भवदेवं, एवं मग्गम्मि वत्तयंतो सो । पत्तो खणेण नियगुरु-पयप उम्पवित्तियं गाम ।। २७४ ॥ बंधुजुयं भवदत्त, वसहिदुवारम्मि आगयं दर्छ। जति चिल्लया तो, परुप्परं विहियबहुहासा ।। २७५ ॥ नूणं भवदत्तेणं, लहुबंध एस दिवसघरो। नियवयणं सच्चवि, आणी.
ओ दिक्खदाणहा ॥ २७६ ॥ अह गुरुणा भवदत्तो, भणिो को एस आगो तरुणो । स भणइ दिक्ख गिहिउ- कामो मह एस लहुभाया ॥ ७७ ॥ तो गुरुणा भवदेवो, भणिओ किं भद्द ? चिल्लो होसि । मा होउ मज्झ भाया, अलीयभासित्ति पडिवन्नं ॥ २७८ ।। अह भवदेवो तक्खण- मेव य गिन्हाविओ वयं गुरुणा । साहूहि समं अन्नत्थ, पेसिओ अह विहारेण | ॥ २७९॥ किं अजवि भवदेवो, नायाभो इय विचिंति सयणा । पुढीए आगन्तुं, भवदत्तं इस पयंपति ॥ २८० ॥ भवदे
॥११५॥