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________________ * * * * दासेणं भणिओ, जइ पुण गिन्हेिड ओसह एयं । इय चितिऊण रमा, गामागे सो समाहविभो ॥२६९॥ अह सो वि |पहे इंतो, पिक्खइ देवीउदो रुयंतीओ । पुच्छइ य कीस तुम्भे, रोयह ? ताओ वि जंपति ॥२७० ॥ चुयनाहाणं सोहम्मकप्पवासीण अम्हदेवीणं । मरिऊण बंकचूली, अभुत्तमसो हवइ नाहो ॥ २७१ ।। जइ पुण तुह वयणाओ, भक्खिस्सइ क हवि कायमंसमिमो । ता नूण भग्गनियमो, पडिही अन्नत्य कुगईए ॥ २७२॥ एएण कारणेणं, रोएमो निम्भरं महाभाग!। | एयं च तुमं सोउं, जं जुत्तं तं करिज्जासु ॥ २७३ ॥ इय तब्बयणं सोउं, विम्हियचित्तो गो स उज्जेणिं । नरवइउवरो. | हेणं, इय भणिओ वंकचूली वि ॥२७४॥ भो मित्त ! कीस न कुणसि, तुममिन्हि कागमंसपरिभोग । पच्छा पच्छित्तमिमं, आकोइज्जा सुगुरुपासे ॥२७५ ॥ तो तेण जंपिय धम्म-मित्त ! एवं तुमपि उवाससि । जाणंतनियमभंगे, पच्छितं के गुणं जणइ ॥ २७६ ॥ जइ भंजिऊण नियम, तप्पायच्छित्तमणुचरेयव्वं । ता पढम चिय जुत्तो, नो काउं नियमभंगो मे ॥२७७॥ तो अक्खइ नरवइणो, जिणदासो देव ! पभणिो वि इमो । अवि चयड जीवियन्न, न उणो नियमं चिरग्गडिय ॥२७॥ इत्तो पारत्तहियं, ता कीरउ देव ! वंकचूलिस्स । निच्छयभविस्समरणे, किमकिच्चण करणावि ॥ २७९ ॥एवं वुत्ते रखा, सुयनिहिणो साहणो समाहूया । पज्जंतविहिसणाहो, कहाविओ धम्मपरमत्थो ॥२८०॥ अह सो साहसमीवे, आलोइयपुव्वकम्मचरिओ । खामियसमग्गजीवो, विसेसपडिवनवयनिवहो ॥ २८१ ॥ पंचपरमिट्ठिमंतं, परिवतंतो समुज्नियाहारो। मरिऊण अचुयंमी, देवो जाओ महिडिओ ॥ २८२ ॥ जिणदाससावगो विय, नियगाम पइ पुणो नियत्ततो । तह चेव तार देवीउ, रोयमाणीउ जंपेइ ॥२८३॥ मंसंमि अ भुत्तपि य, किंतुन्भे रुयह ? ताहि तो कहियं । सविसेसविडियधम्मो, E C REGULASS %E
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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