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श्रीप्रवचन
परीक्षा ८विश्रामे ॥२१॥
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क्षादयस्तापसादयो वा, तत्रोपचारस्याप्यसंभवाद, एवं चैत्यशब्देन सूत्रसम्मत्यैव जिनप्रतिमां समर्थ्य चैत्यशब्देन न साधुर्नवाऽ-1|| हेन भण्यते इति सूत्रसम्मत्यैव समर्थयन्नाह-रायपसेणित्ति राजप्रश्नीयज्ञाताधर्मयोश्चैत्यशब्देन न साधुर्नवाऽर्हन्निति भण्यते, | तथाहि-'तए णं तस्स चित्तस्स सारहिस्स तं महाजणसई जणकलकलं च सुणेत्ता पासेत्ता इमेआरूवे अब्भत्थिए जाव समुप्प| जित्था-किण्हं अज जाव सावत्थीए नयरीए इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा रुद्दमहेइ वा मउंदमहेइ वा नागमहेइ वा भूअमहेइ वा जक्खमहेइ वा शुभमहेइ वा चेइअमहेइ वा रूखमहेइ वा गिरिमहेइ वा दरिमहेइ वा अगडमहेइ वा तडागमहेइ वा नईमहेइ वा सरमहेइ वा सागरमहेइ वाजण्णं इमे बहवे उग्गा भोगा राइण्णा खत्तिआ इक्खागा कोरव्या जाव इन्भा इन्भपुत्ता व्हाया कयबलिकम्मा |जहोववाइए जाव अप्पेगइआ हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइआ पादचारविहारेण महया वंदावंदेहिं णिग्गच्छंति,एवं संपेहेइ २
ता कंचुइअपुरिसं सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-किण्हं भो देवाणुप्पिआ! अज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा०णिग्गच्छंति ?, तएणं से कंचुइपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमणगहिअविणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिग्गहिरं जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिआ! अञ्ज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे जाव वंदावंदेहिं णिग्गच्छंति,एवं खलु भो देवाणुपिए ! पासावच्चिजे केसीनामं कुमारसमणे जाव दुइजमाणे हमागए जाव विहरइ"त्ति(५४) श्रीराजप्रश्नीयोपाङ्गे,अत्र चैत्यमहोत्सवनिषेधेन न चैत्यशब्देन साधुर्मण्यते इति दर्शितं,अथाहद्वाव्यत्वाभावं दर्शयन्नाह-"णाये'त्यादि ज्ञातधर्मकथा) चैत्यशब्देन नाहन भण्यते,तथाहि-"तए णं से मेहे कुमारेते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे णिग्गच्छमाणे पासइ २त्ता कंचुइजपुरिसं सदावेइ रत्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिआ! अज रायगिहे
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