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________________ A COCREACPECIES टीकाम प्रासंगिक कथाएंभी दी गई है इससे संक्षेप होने परभी ग्रन्थकी उपयोगिता एवं प्रचारमें वृद्धि ही हुई है। इस लघुवृत्तिके कर्ता खरतर गच्छीय साधु समाजमें सुप्रसिद्ध जैसलमेर आदि भण्डारों के संस्थापक, सैंकडों प्रतिमाओंके प्रतिष्ठापक, युगप्रवर जिनभद्रसूरिजीके प्रशिष्य और महोपाध्याय सिद्धान्त रुचिजीके शिष्य थे। सं. १४८४ में उपाध्याय नया सागरके जिन भद्रजीको प्रेषित · विज्ञप्ति त्रिवेणी' नामक ( महत्त्वपूर्ण 'नगरकोट्ट' तीर्थयात्राके वर्णन वाले ) प्रन्थ में जिनभद्र सूरिजीके साथ पं. सिद्धान्तरुचि गणिका नामभी उल्लिखित है। अतः उस समय उनकी उम्र २४ वर्षके लगभग मानें तो सिद्धान्तकचिजीका जन्म सं. १४६० के आसपास सम्भवित है। ये बहुत उच्च कोटिके विद्वान और प्रतिष्ठावान थे, मांडवगढ़के ग्यासदीन बादशाहकी सभामें इन्होंने किसी बादीको परास्त कर विजयपद प्राप्त किया था और इसका उल्लेख साधुसोम और मुनिसोमने इस प्रकार किया है: श्रीखरतरगच्छेश-श्रीमजिनमद्रसुरिशिष्याणाम् । श्रीजीरापल्लीपार्श्वप्रभु-लब्धवरप्रसादानाम् ॥१॥ श्रीग्यासदीनसाहे-महासभालब्धवादिविजयानाम् । श्रीसिद्धान्तरुचिमहोपा-ध्यायानां विनेयेन ॥२॥ (साधु सोम ) AAAAACANCIES ग्यासदीनसुरत्राण-गोष्ठाप्तजैनपत्रकाः। शिष्याः श्रीजिनमद्राणां, सिद्धान्तरुचिवाचकाः ॥ ६७६॥ (मुनिसोम) प्रस्तुत टीकामें भी राजसमा वादी वृन्दो पर विजय प्राप्त करनेका उल्लेख है पर उसमें किसकी राजसभामें राजाका नाम नहीं दिया है। जैसलमेर भंडारमें संग्रहणी सावरिकी प्रति मांडवगढ़में प्रस्तुत लघुवृत्तिके रचयिता माधुसोम लिखित
SR No.600375
Book TitlePushpamala Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri, Buddhisagar
PublisherJindattasuri Bhandagar
Publication Year1961
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size27 MB
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